श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने कश्मीर के लिए दिया था अविस्मरणीय बलिदान

सन्तोषसिंह नेगी/चमोली..डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी एक भारतीय चिन्तक, शिक्षाविद् राजनेता और भारतीय जनसंघ के संस्थापक थे। उन्हें एक प्रखर राष्ट्रवादी के रूप में जाना जाता है। वो पंडित जवाहर लाल नेहरु मंत्रिमंडल में उद्योग और आपूर्ति मंत्री रहे पर नेहरु के साथ मतभेदों के कारण मंत्रिमंडल और कांग्रेस पार्टी से त्यागपत्र देकर एक नयी राजनैतिक पार्टी ‘भारतीय जनसंघ’ की स्थापना की। केंद्र सरकार में मंत्री बनने से पहले वो पश्चिम बंगाल सरकार में वित्त मंत्री रह चुके थे। मात्र 33 वर्ष की आयु वो कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति बन गए थे। इस पद पर नियुक्ति पाने वाले वह सबसे कम आयु के व्यक्ति थे।


साल 1926 में वो इंग्लैंड चले गए और 1927 में बैरिस्टर बन कर वापस भारत आने के बाद 1934 में कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति बनने वाले सबसे कम उम्र के व्यक्ति थे।डॉ. मुख़र्जी के राजनैतिक जीवन की शुरुआत साल 1929 में की। श्यामा प्रसाद मुख़र्जी ने मुहम्मद अली जिन्ना और मुस्लिम लीग की साम्प्रदायिकतावादी राजनीति का विरोध किया था उस समय जिन्ना मुसलमानों के लिए बहुत ज्यादा रियायत की मांग कर रहे थे और पाकिस्तान आन्दोलन को भी हवा दे रहे थे।

उन्होंने मुस्लिम लीग के साम्प्रदायिकतावादी दुष्प्रचार से हिन्दुओं की रक्षा के लिए कार्य किया और मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति का विरोध किया।डॉ. मुखर्जी जम्मू कश्मीर राज्य को एक अलग दर्जा दिए जाने के घोर विरोधी थे और चाहते थे की जम्मू कश्मीर को भी भारत के अन्य राज्यों की तरह माना जाये। वो जम्मू कश्मीर के अलग झंडे,अलग निशान और अलग संविधान के विरोधी थे।


पंडित जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें अंतरिम सरकार में उद्योग एवं आपूर्ति मंत्री के रूप में शामिल किया था| नेहरू और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली के बीच हुए समझौते के पश्चात 6 अप्रैल 1950 को उन्होंने मंत्रिमंडल से त्यागपत्र दे दिया राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर-संघचालक गुरु गोलवलकर जी से परामर्श लेकर श्री मुखर्जी ने 21 अक्टूबर 1951 को राष्ट्रीय जनसंघ की स्थापना की और 1951-52 के आम चुनावों में राष्ट्रीय जनसंघ के 3 सांसद चुने गए जिनमें एक डॉ. मुखर्जी भी थे तत्पश्चात उन्होंने संसद के अन्दर 32 लोकसभा और 10 राज्यसभा सांसदों के सहयोग से नेशनल डेमोक्रेटिक पार्टी का गठन किया |


डॉ. मुखर्जी भारत की अखंडता और कश्मीर के विलय के दृढ़ समर्थक थे उन्होंने अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को भारत के बाल्कनीकरण की संज्ञा दी थी। अनुच्छेद 370 के राष्ट्रघातक प्रावधानों को हटाने के लिए भारतीय जनसंघ ने हिन्दू महासभा और रामराज्य परिषद के साथ सत्याग्रह आंदोलन आरंभ किया। डॉ. मुखर्जी 11 मई 1953 को कुख्यात परमिट सिस्टम का उलंघन करके कश्मीर में प्रवेश करते हुए गिरफ्तार कर लिए गए और गिरफ्तारी के दौरान ही विषम परिस्थितियों में 23 जून 1953 को उनका स्वर्गवास हो गया

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