नई दिल्ली, 10 नवम्बर, 2022: इलेक्ट्रिक वाहनों के भारतीय निर्माताओं का प्रतिनिधित्व करने वाले पंजीकृत संगठन एसएमईवी (सोसाइटी ऑफ मैनुफैक्चरर्स ऑफ इलेक्ट्रिक व्हीकल्स) ने इलेक्ट्रिक एवं हाइब्रिड मोबिलिटी पर संसद की स्थायी समिति के समक्ष याचिका प्रस्तुत की।
एसएमईवी ने अपनी याचिका में बताया कि कुछ लोग सोच समझ कर तैयार की गई ई-मोबिलिटी पॉलिसी का गलत तरीके से लाभ उठा रहे हैं जिन्होंने भारत में ई-स्कूटर क्रान्ति लाने में महत्वपूर्णभ् भूमिका निभाई थी। एक असामान्य परिस्थिति बनाई गई है जहां अनंती ई-मोबिलिटी पॉलिसी ग्रुप द्वारा सरकार की पॉलिसी को समर्थन देने वाली और ई-स्कूटर क्रान्ति शुरू करने वाली कंपनियों को बाज़ार से बाहर करने के प्रयास किए जा रहे हैं। स्पष्ट है कि यह समूह ई-मोबिलिटी पॉलिसी को सफल होते नहीं देखना चाहता। याचिका में कहा गया। इसको ध्यान में रखकर एसएमईवी ने गृह मंत्रालय को इस अभियान के बारे में भारत या विदेश में स्थित अज्ञात समूह या समूहों द्वारा सूचित किया। साइबर सैल, पुलिस में शिकायत दर्ज कराई गई है।
2015 में, भारत सरकार ने ईंधन की लागतों, आर्थिक एवं राजनैतिक उथल-पुथल और पर्यावरणी प्रभावों के मद्देनज़र एक विवेकपूर्ण नीति की अवधारणा पेश की। 2023 तक 12 फीसदी के महत्वाकांक्षी मुनाफ़े के साथ ई-वाहनों के निर्माण में तेज़ी लाने के लिए ई-मोबिलिटी पॉलिसी तैयार की गई।
किसी भी अन्य विवेकपूर्ण पॉलिसी की तरह इसमें भी मौजूदा तकनीकी आधार में मौजूद मुश्किलों पर रोशनीडाली गई। इसमें वो सभी अवधारणाएं पेश की गई जो एक तर्कसंगत पॉलिसी में होनी चाहिए; उस समय कोई मौजूदा तकनीकी आधार नहीं था, इसलिए स्थानीयकरण को ध्यान में रखते हुए सब्सिडी और प्रोत्साहन की बात की गई। इलेक्ट्रिक वाहनों के ज़्यादातर हिस्से आयात किए जाते थे, मुख्य रूप से यह आयात चीन से होता था, इसलिए जल्द से जल्द इस परिस्थिति में भी बदलाव की बात कही गई।
अब ज़़्यादातर दोपहिया निर्माता जिन्होंने आईसीई वाहनों में भारी निवेश किया है, वे ईवी की ओर रूख कर गए हैं। वहीं कुछ स्टार्ट-अप्स ने भी इस क्षेत्र में प्रवेश किया और तेज़ी से विकसित भी हुए। छह नए प्लेयर्स ने FAME पॉलिसी की अवधि के भीतर भारतीय ई-दोपहिया बाज़ार को शून्य से 9 लाख के आंकड़े तक पहुंचा दिया।
इसे हासिल करने में कई चुनौतियां सामने आईं, कोविड के दो सालों के दौरान ये चुनौतियां और अधिक बढ़ गईं। जिसके चलते खरीद, स्थानीयकरण की मुश्किलों की वजह से समय पर कंपनियों के लिए निर्माण कार्य पूरा करना मुश्किल हो रहा था।
सरकार ने इस पर यथोचित कार्रवाई की और महसूस किया कि इन लक्ष्यों पर काम करने की ज़रूरत है। इससे पहल कि किसी भी नीतिगत बदलाव को जारी किया जाता, कुछ लोगों ने पॉलिसी पर सवाल उठाने शुरू कर दिए, जिन्हें विरोधी या निंदक कहा जा सकता है।
इस वर्ग ने सरकार पर आरोप लगाए कि अग्रणी स्टार्ट-अप कंपनियों को सब्सिडी दी जा रही है जबकि स्थानीयकरण की अनदेखी हो रही है। उन्होंने यह आरोप भी लगाया कि स्टार्ट-अप्स डेटा से छेड़छाड़ करने और सब्सिडी पर दावा करने का प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने हर विभाग, ब्यूरोक्रेट्स एवं समाचार एजेन्सियों को गुमनाम पत्र भेजे, तथा मिलीभगत, धोखाधड़ी, काले धन को वैध बनाने एवं वित्तीय दुराचार के आरोप लगाए। सेक्टर में नए प्रवेश करने वाले प्लेयर्स के खिलाफ़ आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया।
एसएमईवी के एक प्रवक्ता ने बताया, ‘‘आमतौपर पर ऐसे गुमनाम अभियानों की वजह से किसी को परेशानी नहीं होनी चाहिए। किंतु यह बेहद अजीब था कि स्टार्ट-अप्स धीरे-धीरे ठंडे बस्ते में जाने लगे और उनकी सब्सिडी का आवंटन रोक दिया गया। ये स्टार्ट-अप्स और नए प्लेयर्स हैं, पारम्परिक ईंधन वाली स्कूटर कंपनियों से हटकर वे बिना सब्सिडी के धराशायी हो जाएंगे। सोच-समझ कर बनाई गई पॉलिसी, जिसे अब तक अच्छी तरह कार्यान्वित किया गया है, अचानक क्या हुआ कि इसकी जांच के लिए सवाल उठने लगे हैं।’