चांद के पास इतनी ऑक्सीजन है कि वह 8 अरब लोगों को 1,00,000 वर्षों तक जीवित रख सकता हैं।
बेल्जियम के एक स्टार्टअप ने दावा किया हैं कि, चांद पर इलेक्ट्रोलिसिस के जरिए ऑक्सीजन को पैदा किया जा सकता हैं। ऑक्सीजन पैदा करने की प्रक्रिया साल 2025 तक शुरू किया जायेगा।
पूरी दुनिया के वैज्ञानकि अंतरिक्ष में ख़ोज कर रहे हैं। ख़ोज इसलिए कि पृथ्वी के अलावा और किसी ग्रह में जीवन मुमकिन हैं की नहीं। हाल ही में चंद्रमा पर ऑक्सीजन कैसे पैदा किया जाये इसपर भारी मात्रा में समय और पैसा निवेश किया जा रहा हैं। इसी ख़ोज में एक प्रगति हुई हैं। वैज्ञानिकों ने दावा किया कि लेजर-तेज फोकस तकनीक के ज़रिये चांद पर ऑक्सीजन को पैदा किया जा सकता हैं।
अक्टूबर में, ऑस्ट्रेलियाई अंतरिक्ष एजेंसी और नासा ने एक कार्यक्रम में समझौता किया। समझौते के तहत चंद्रमा पर ऑस्ट्रेलिया द्वारा बनाई गयी एक रोवर को चंद्रमा पर भेजा जाना हैं। यह रोवर का लक्ष्य चंद्रमा पर चट्टानों को इकट्ठा करना था जो अंत में चंद्रमा पर सांस लेने योग्य ऑक्सीजन पैदा कर सके।
हालांकि चंद्रमा का वातावरण बहुत पतला है। ज्यादातर हाइड्रोजन, नियॉन और आर्गन से बना हुआ है। यह उस तरह का गैसीय मिश्रण का वातावरण नहीं है जिसमे मनुष्यों जीवित रह सके।
गौर करने वाली बात हैं कि, वास्तव में चंद्रमा पर भरपूर ऑक्सीजन है। लेकिन यह सिर्फ गैसीय रूप में नहीं है। इसके बजाय ऑक्सीजन चट्टान की परत और महीन धूल जो चंद्रमा की सतह को ढकती है, के अंदर फंसा हुआ है। अब सबसे ज़रूरी सवाल कि अगर वैज्ञानकि इन चट्टानों और धूल में फंसे हुए ऑक्सीजन को निकाल सकें, तो क्या चंद्रमा पर मानव जीवन को जीने के लिए यहां पर्याप्त का समर्थन ऑक्सीजन हैं ?
कितना और कहां ऑक्सीजन हैं ?
ऑक्सीजन हमारे आसपास की जमीन में कई खनिजों में पाई जा सकती है। और चंद्रमा ज्यादातर उन्हीं चट्टानों से बना है जो आप पृथ्वी पर पाएंगे। सिलिका, एल्युमिनियम, आयरन और मैग्नीशियम ऑक्साइड जैसे खनिज चंद्रमा के ज़मीन पर हैं। इन सभी खनिजों में ऑक्सीजन होता है, लेकिन इस रूप में नहीं कि हमारे फेफड़े तक पहुंच सकें। चंद्रमा पर ये खनिज कुछ अलग रूपों में मौजूद हैं जिनमें कठोर चट्टान, धूल और सतह को ढकने वाले पत्थर शामिल हैं। यह सामग्री अनगिनत सदियों से उल्कापिंडों के चांद की सतह पर दुर्घटनाग्रस्त होने से बने हैं।
कुछ लोग चंद्रमा की ज़मीन को मिट्टी कहते हैं, लेकिन वैज्ञानिक इस ज़मीन को मिट्टी कहने में संकोच करते हैं। मिट्टी जैसा कि हम जानते हैं कि यह बहुत ही जादुई चीज है जो केवल पृथ्वी पर होती है। इसके अलावा यह मिट्टी की मूल सामग्री पर काम करने वाले जीवों की एक विशाल श्रृंखला द्वारा बनाया गया है। जिसमे पूर्ण रूप से कठोर चट्टान और पत्थर शामिल हैं।
चंद्रमा की ज़मीन लगभग 45% ऑक्सीजन से बनी है। लेकिन यह ऑक्सीजन ऊपर बताए गए खनिजों में कसकर बंधी हुई है। उन मजबूत बंधनों को तोड़ने के लिए, इलेक्ट्रोलिसिस करने की जरूरत है।
इलेक्ट्रोलिसिस क्या होती हैं ?
इलेक्ट्रोलिसिस पानी को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में अलग करने के लिए बिजली का उपयोग करने की प्रक्रिया है। पृथ्वी पर इलेक्ट्रोलिसिस प्रक्रिया का उपयोग आमतौर पर निर्माण करने के लिए किया जाता है, जैसे कि एल्यूमीनियम का उत्पादन करना। एल्यूमीनियम को ऑक्सीजन से अलग करने के लिए इलेक्ट्रोड के माध्यम से पानी में इलेक्ट्रिक करंट पास किया जाता हैं। जिसे एल्यूमीनियम ऑक्साइड कहा जाता है।
इस मामले में, ऑक्सीजन एक बिप्रोडक्ट के रूप में पैदा होगा। चंद्रमा पर, ऑक्सीजन मुख्य पैदावार होगा। और निकाला गया एल्यूमीनियम (या अन्य धातु) संभावित रूप से दूसरी मुख्या पैदावार होगी। वैज्ञानिकों के अनुसार सबसे पहले सॉलिड मेटल ऑक्साइड को पानी के रूप में बदलना होगा। पृथ्वी पर ऐसा करने की तकनीक है, लेकिन इस उपकरण को चंद्रमा पर ले जाना और इसे चंद्रमा पर चलाने के लिए पर्याप्त ऊर्जा पैदा करना एक बड़ी चुनौती होगी।
यह एक बहुत ही सीधी प्रक्रिया है, लेकिन समस्या ये हैं कि, यह प्रक्रिया बहुत ही ज़यदा बिजली का भूखा है। इस प्रिक्रिया को सफ़ल होने के लिए, इसे सौर ऊर्जा या चंद्रमा पर उपलब्ध अन्य ऊर्जा स्रोतों द्वारा लैस होना होगा।
अब तक क्या हासिल हुआ हैं ?
बेल्जियम के एक स्टार्टअप ने दावा किया हैं कि, चांद पर इलेक्ट्रोलिसिस के जरिए ऑक्सीजन को पैदा किया जा सकता हैं। ऑक्सीजन पैदा करने की प्रक्रिया साल 2025 तक शुरू किया जायेगा।
चंद्रमा कितनी ऑक्सीजन प्रदान कर सकता है?
वैज्ञानिकों के अनुसार, यदि हम चंद्रमा की गहरी कठोर चट्टान सामग्री में बंधे ऑक्सीजन की ख़ोज करते हैं, और केवल चट्टानों पर विचार करें जो सतह पर आसानी से उपलब्ध है – तो हम कुछ अनुमानों का अंदाज़ा लगा सकते हैं।
चांद के पत्थर पर प्रत्येक एक मीटर में औसतन 1.4 टन खनिज होते हैं, जिसमें लगभग 630 किलोग्राम ऑक्सीजन शामिल है। नासा का कहना है कि मनुष्य को जीवित रहने के लिए एक दिन में लगभग 800 ग्राम ऑक्सीजन सांस लेने की आवश्यकता होती है। तो 630 किलो ऑक्सीजन एक व्यक्ति को लगभग दो साल तक जीवित रख सकता हैं।
अब मान लेते हैं कि चंद्रमा पर चट्टानों की औसत गहराई लगभग दस मीटर है, और हम इससे सारी ऑक्सीजन निकाल सकते हैं। इसका मतलब है कि चंद्रमा की सतह के शीर्ष दस मीटर पृथ्वी पर सभी आठ अरब लोगों को लगभग 1,00,000 वर्षों तक ऑक्सीजन दे सकती जिससे इंसान का जीवन चांद पर अब मुमकिन हैं।
लेकिन यह इस बात पर भी निर्भर करेगा कि वैज्ञानिक कितनी प्रभावी ढंग से ऑक्सीजन निकालने और उपयोग करने में सफल रहते हैं। बहरहाल, यह आंकड़ा काफी अद्भुत है।