आकाश रंजन: भारत में निजी स्कूलों को COVID-19 महामारी के कारण बैंकों और अन्य उधारदाताओं को अपने बकाया लोन का भुगतान करने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। उनमें से कई को डर है कि COVID-19 संक्रमण की तीसरी लहर,और उसके बाद लॉकडाउन, अगर होता है तो कही उन्हें स्कूल हमेशा के लिए बंद न करना पड़ जाये। सबसे ज्यादा नुकसान प्री-प्राइमरी से लेकर मिडिल-लेवल स्कूलों को हुआ है, खासकर ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में कम आय वाले परिवारों को। COVID-19 बच्चों के लिए शिक्षा की कमी के रूप में एक विनाशकारी नुकसान के अलावा, बैंकों और अन्य उधारदाताओं के लिए भी विनाशकारी नुकसान हो सकते हैं, इसके साथ शिक्षकों और सहायक कर्मचारियों के लिए भी रोज़ी रोटी पर वार कर सकता है।
इसे और समझने के लिए केरला पब्लिक स्कूल जो की करीमनगर तेलंगाना में है इसका उद्धरण लेते हैं। नर्सरी से दसवीं कक्षा तक में 550 छात्र हैं, जिनमें से अधिकांश छात्र पड़ोसी गांवों से आते है। पिछले 18 महीनों से, इस स्कूल का बजट और नकदी प्रवाह लगभग शुन्य हैं। क्योंकि इसके द्वारा एकत्र की गई अधिकांश फीस अपने कर्मचारियों को वेतन देने, लोन किस्त चुकाने और ऑनलाइन कक्षाएं चलाने में समाप्त हो गई हैं।
पिछले शैक्षणिक वर्ष के लिए फीस कलेक्शन सिर्फ 20% के करीब था ,क्योंकि माता-पिता या तो महामारी के दौरान अपनी आजीविका/नौकरी खो चुके थे या ऑफ़लाइन कक्षाओं की अनुपस्थिति के कारण स्कूल की फीस का भुगतान करने के इच्छुक नहीं थे। इसके अलावा, पिछले एक दशक से केरल हाई स्कूल के अध्यक्ष और प्रिंसिपल रहे राजेंद्र बी का कहना है कि ऑनलाइन कक्षाओं में उपस्थिति केवल 20-30% कम रही है, क्योंकि अधिकांश छात्रों के पास स्मार्टफोन और इंटरनेट कनेक्शन नहीं हैं।
लेकिन अगर तीसरी कोविड की लहर आती है और फिर से तालाबंदी की घोषणा की जाती है, तो 27 साल पुराना यह स्कूल अब नहीं बच पाएगा। राजेंद्र ने कहा, हमें महामारी के दौरान अपने लोन की किस्तों का भुगतान करने के लिए परिवार और दोस्तों से उधार लेना पड़ रहा है क्योंकि कर्ज बढ़ता रहा। “अगर तीसरी लहर आती है और फिर से तालाबंदी होती है, तो मुझे बकाया चुकाने के लिए अपनी 1,000 वर्ग फुट स्कूल की आधी जमीन बेचनी पड़ सकती है,” उन्होंने कहा।
शिक्षा रिपोर्ट 2020 के अनुसार 16,761 स्कूलों के सर्वे से पता चलता है कि निजी स्कूलों में पढ़ने वाले कई छात्र पिछले तीन वर्षों में पहले ही सरकारी स्कूलों में चले गए हैं। सितंबर 2020 में किए गए इस सर्वे में कहा गया है कि सरकारी स्कूलों में जाने का कारण घरों में आर्थिक संकट के साथ निजी स्कूलों का स्थायी तौर पर बंद रहना भी हो सकता हैं।
नेशनल लीडर-फाइनेंशियल सर्विसेज रिस्क एडवाइजरी विवेक अय्यर के अनुसार, भले ही स्कूल फिर से खुल गए हैं लेकिन माता-पिता अभी भी अपने बच्चों, विशेष रूप से नर्सरी और आठवीं कक्षा के बीच पढ़ने वाले लोगों को वापस स्कूलों में भेजने में कतरा रहे हैं। हमारे पोर्टफोलियो में लगभग 3-5% स्कूल मतलब लगभग 20 स्कूलों ने ज़ाहिर किया है कि वे अपना व्यवसाय जारी नहीं रख पाएंगे। अगर तीसरी लहर आती है, तो यह संख्या बढ़ जाएगी।