जिलाधिकारी ने कहा कि वन हमारी अमूल्य सम्पदा है, जिसकी रक्षा करना हर नागरिक की जिम्मेदारी है। उन्होंने जंगल तथा जंगल के आसपास बसे गांवों के चारों ओर मनरेगा से कन्र्वजेंन्स कर फायर कन्ट्रोल लाइन का कार्य कराने तथा आग लगाने वालों के खिलाफ भी सख्ती से निपटने के निर्देश प्रभागीय वनाधिकारियों को दिये। कहा कि विगत आंकडों के आधार पर चिन्हित अति संवेदनशील क्षेत्रों पर पैनी नजर रखी जाय। उन्होंने वनों मेें सभी पैदल मार्ग, सड़कों के किनारे से पीरूल घास, सूखी पत्तियां आदि ज्वलनशील ईधन की नियमित रूप से सफाई करने के निर्देश दिये। उन्होंने फील्ड स्टाॅफ को साफ-सफाई कार्यो की फोटोग्राफस् उपलब्ध कराने तथा जहाॅ सफाई करना संभव न हो ऐसे क्षेत्रों की सूची उपलब्ध कराने के भी निर्देश दिये।
जिलाधिकारी ने कहा कि गांव स्तर पर गठित आपदा प्रबधन समिति को इन दिनों स्वयं सेवी संस्थाओं के माध्यम से 5 दिवसीय आपदा प्रबंधन का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। उन्होंने प्रभागीय वनाधिकारियों को इस प्रशिक्षण के दौरान वनाग्नि की रोकथाम का प्रशिक्षण भी देने को कहा। वनाग्नि को नियंत्रित करने व रोकने हेतु गांवों, स्कूल स्तरों पर जागरूकता अभियान चलाया जाय। साथ ही सभी विभागीय अधिकारियों को आपसी समन्वय के साथ वन पंचायतों, ग्रामीण संगठनों आदि को जागरूक कर वनाग्नि घटनाओं की रोकथाम करने को कहा। उन्होंने सभी एसडीएम को ग्राम प्रधानों, वन पंचायत सरंपच, पटवारी वन विभाग के उप खण्ड अधिकारियों के साथ एक माह के भीतर बैठक करते हुए अपने क्षेत्रों में अलर्ट रखने के निर्देश दिये। साथ डीडीएमओ को वनाग्नि की रोकथाम के लिए तहसीलों में उपलब्ध सामग्री का आॅडिट भी कराने को कहा।
बैठक में नोडल प्रभागीय वनाधिकारी एनएन पाण्डेय ने बताया कि राजस्व एवं सिविल वनों की सुरक्षा के लिए पंचायत स्तर ग्राम प्रधान तथा प्रबंधित वनों की सुरक्षा के लिए वन पंचायत सरपंच की अध्यक्षता में प्रत्येक गांव में सुरक्षा समिति गठित की गई है। बताया कि विगत वनाग्नि घटनाओं के आधार पर जिले में 77479.28 है0 वन क्षेत्र अति संवेदनशील तथा 78539.87 है0 वन क्षेत्र संवेदनशील श्रेणी में रखा गया है। वनाग्नि की रोकथाम के लिए जिले के 05 वन प्रभागों में 101 क्रू-स्टेशन स्थापित हैं। वनाग्नि की त्वरित सूचना देने के लिए वन प्रभागों के पास उपलब्ध वायरलैस संयंत्रों की जानकारी देते हुए बताया कि विभाग के पास 188 हैण्ड सैट, 21 मोबाईल सैट, 37 स्थिर सैट तथा 7 रिपीटर उपलब्ध है। कहा कि वनों में आग लगने का मुख्य कारण अत्यधिक गर्मी एवं लोगों का वन क्षेत्रों एवं वन क्षेत्र से लगे मुख्य मार्गों पर धूम्रपान करना, वनों से लगे हुए निजी खेतों में स्थित सूखी घास व कबाड को लापरवाही से जलाया जाना है, जिसके लिए लोगों को जागरूक व प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है।
इस दौरान सामाजिक कार्यकर्ता मुरारी लाल ने सुझाव दिया कि तहसील एवं ब्लाक स्तर पर वन पंचायतों के सरपंचों की बैठक बुलाकर वनाग्नि रोकथाम के बारे में जानकारी दी जाय। इसके साथ ही महिला व युवक मंगल दलों को भी वनों के महत्व के बारे में जानकारी दी जाय और जिस गांव में वनाग्नि की घटना नहीं होगी उन गांवों को पुरस्कृत किया जायेगा, इससे अन्य गावों के लोगों को भी प्रेरणा मिलेगी।
बैठक में डीएफओ एनएन पाण्डेय, डीएफओ अमित कंवर, सीएमओ डा0 तृप्ति भट्ट, आपदा प्रबन्धन अधिकारी एनके जोशी, एई लोनिवि एसके टम्टा सहित वन विभाग के फारेस्टर व फारेस्टगार्ड उपस्थित थे।