छत्तीसगढ़। आज के इस आधुनिक युग मे टैटू गुदवाना फैशन हो गया है।लड़के लड़कियों को टैटू बनवाते हुये अक्सर देखा होगा, लेकिन क्या आपको पता है,टैटू यानी कि गोदना कराने की परम्परा आदिवासियों में सदियों से चली आ रही है।क्या है इसका महत्व?क्यो आदिवासी महिलाएं गुदवाती है अपने बदन पर गोदना।
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 135 किलोमीटर दूर बसे पंडरिया ब्लाक के बा पानी बासाकोला के आदिवासी समुदाय जिनको क्षेत्रीय भाषा मे बैगा समुदाय भी कहा जाता है।आदिवासी समुदाय में पीढ़ियों से गुदना गोदने का काम करते चली आ रही 65 वर्षीय बदनीन शान्ती बाई ने नमामि भारत से बात करते हुये बताया की वो गोदना गोदने का काम पिछले कई दशकों से करती चली आ रही है।आगे बताती है गुदना समुदाय में इस जन्म से लेकर दूसरे जन्म तक कि निशानी रहती है ऐसी ही तमाम प्रकार की मान्यताये है।माथे पर गुदना महज छः साल की उम्र से गोदना गुदवाना शुरू कर दिया जाता है।वही गोदने में प्रयुक्त की जाने वाली स्याही रमतिला (कालेतिल) को अच्छी तरह से कूट कर पीस लेते है,वही इस रमतिला से तैयार किया हुवा प्राकृतिक रंग से गुदाई करते है।
35 सुईयों को एक साथ मिला कर शरीर मे है चुभाते।
गोदना गोदई करते समय बदनिन पहले जिसके गोदना करना होता है।उसको जंगल मे एक सुरक्षित स्थान पर ले जाती है।वहां पर भी उसको एक चटाई पर लिटाया जाता है।फिर उसके बाद जिस शरीर के जिस भाग में गोदना करना होता है वहां पर पहले बांस की तीली से आकृति बनाते है। फिर उसमें रमतिला से तैयार किया हुवा रंग में 35 सुइयों को एक साथ डुबोकर के आकृति में चुभाते है।इस दौरान बहुत ही असहनीय दर्द होता है खून बहने लगता है।फिर उसमें ताजे गोबर को पानी मे मिलाकर के गोदना पर रगड़ रगड़ के साफ किया जाता है। उसके बाद उसमे हल्दी और रमतिला (कालेतिल) का लेप लगा देते है।उसके बाद भजन कीर्तन करते है।वही गोदना बनाने वाली बदनिन को अन्न के साथ-साथ खाने पीने की वस्तुएं, और पैसा भी दान में देते हैं।