सन्तोषसिंह नेगी / रुद्रप्रयाग जिले में त्रियुगीनारायण मंदिर भगवान शिव और मां गौरा के विवाह का साक्षी है। यहां भगवान विष्णु बामन रूप मेें विराजमान हैं। जिनका प्रतिदिन प्राचीन देव कुंडों के जल से महाभिषेक होता है। मान्यता है कि यहां आने वाले हर भक्त की मनोकामना पूरी होती है।
प्राचीन मान्यता क्या है
त्रेेता युग में पर्वतराज हिमालय शिव और हिमाचल के राजा की पुत्री गौरा का विवाह भगवान शंकर से इसी स्थान पर हुआ था। मान्यता है कि भगवान शंकर ने आराध्य भगवान विष्णु को साक्षी मानते हुए यहां पर पार्वती के साथ सात फेरे लिए थे। कहा जाता है कि मंदिर में भगवान शिव व पार्वती की विवाह के समय की मूर्ति भी यहां मौजूद है। शिव-पार्वती विवाह की साक्षी सप्त फेरा वेदी अखंड ज्योति आज भी मंदिर के बरामदे में निरंतर जल रही है। इस ज्योति में यहां पहुंचने वाला हर श्रद्धालु लकड़ी अर्पित करता है। मंदिर परिसर में धर्म शिला भी है। मंदिर के पुजारी बताते हैं कि इस शिला में ही पर्वतराज हिमालय ने अपनी पुत्री गौरा का कन्यादान किया था।
त्रेेता युग में पर्वतराज हिमालय शिव और हिमाचल के राजा की पुत्री गौरा का विवाह भगवान शंकर से इसी स्थान पर हुआ था। मान्यता है कि भगवान शंकर ने आराध्य भगवान विष्णु को साक्षी मानते हुए यहां पर पार्वती के साथ सात फेरे लिए थे। कहा जाता है कि मंदिर में भगवान शिव व पार्वती की विवाह के समय की मूर्ति भी यहां मौजूद है। शिव-पार्वती विवाह की साक्षी सप्त फेरा वेदी अखंड ज्योति आज भी मंदिर के बरामदे में निरंतर जल रही है। इस ज्योति में यहां पहुंचने वाला हर श्रद्धालु लकड़ी अर्पित करता है। मंदिर परिसर में धर्म शिला भी है। मंदिर के पुजारी बताते हैं कि इस शिला में ही पर्वतराज हिमालय ने अपनी पुत्री गौरा का कन्यादान किया था।
मंदिर पहुंचने वाले श्रद्धालुओं की पूजा-अर्चना भी इसी शिला में कराई जाती है। त्रियुगीनारायण दिव्य स्थल में भगवान विष्णु वामन अवतार में मौजूद हैं। उनके साथ मां सरस्वती और मां लक्ष्मी भी विराजमान हैं। इस क्षेत्र का नाम त्रियुगीनारायण को लेकर धार्मिक मान्यता है कि यहां पर भगवान नारायण, लक्ष्मी और सरस्वती एक साथ विराजमान हैं। त्रियुगीनारायण मंदिर में भाद्रपद की द्वादशी को मेला लगता है। गांव के सभी परिवार रिंगाल की टोकरी में उगाई जौ की हरियाली को भगवान नारायण (वामन) को अर्पित करते हैं। भगवान की मूर्ति को कुछ देर के लिए कांसे की थाली में विराजमान कर परिसर में लाया जाता है। मान्यता है कि भगवान ने अपना वामन रूप इसी स्थान पर धारण किया था। त्रेता युग में भगवान नारायण ने राजा बली से वामन रूप में तीन पग भूमि दान में मांगी थी। पहला पैर स्वर्ग, दूसरा पृथ्वी व तीसरा पाताल मांगा था।
चार प्राचीन कुंडों का महत्व
त्रियुगीनारायण मंदिर परिसर में चार प्राचीन कुंड मौजूद हैं। ब्रह्मकुंड , रुद्रकुंड में श्रद्धालु अपने देवी-देवताओं का देव निषाण का स्नान के साथ स्वयं भी स्नान करते हैं। जबकि विष्णु कुंड में श्रद्धालु आचमन करते हैं। मंदिर के द्वार पर स्थित सरस्वती कुंड में पित्रपक्ष में पित्रों को तर्पण देते हैं।
त्रियुगीनारायण मंदिर परिसर में चार प्राचीन कुंड मौजूद हैं। ब्रह्मकुंड , रुद्रकुंड में श्रद्धालु अपने देवी-देवताओं का देव निषाण का स्नान के साथ स्वयं भी स्नान करते हैं। जबकि विष्णु कुंड में श्रद्धालु आचमन करते हैं। मंदिर के द्वार पर स्थित सरस्वती कुंड में पित्रपक्ष में पित्रों को तर्पण देते हैं।