क्या अखिलेश के शासन में अराजकतावाद का शिकार था समाजवाद ?

उत्तर प्रदेश में अब हर राजनीतिक दल में विधानसभा चुनावों की तैयारियां जोरशोर से शुरू हो गई हैं। जिलों में बड़े नेताओं के दौरे और रैलियां का दौर शुरू हो गया है। प्रदेश में चुनावी रंग चढ़ने लगा है। इस माहौल में अब समाजवादी पार्टी (सपा) और उसके मुखिया अखिलेश यादव के भविष्य दांव पर है। अब हर जिले में ये सवाल पूछा जा रहा है कि अखिलेश सरकार में आखिर समाजवादी क्या था? समाजवाद का एक खास अर्थ होता है। इस नाम पर राजनीति करने वाली पार्टी के पास अलग या विशिष्ट कार्यक्रम होना चाहिए था। पर क्या सपा की अखिलेश सरकार में कोई समाजवादी कार्यक्रम भी था? अखिलेश सरकार के पांच साल के शासन को ध्यान में रखते हुए इस प्रश्न को अब इस रूप में पूछा जा रहा है कि अखिलेश की सरकार ने आखिर ऐसी क्या योजनाएं एवं कार्यक्रम पेश किए, जिन्हें बाकी सरकारों से अलग तथा समाजवादी कहा जाए ? 

प्रदेश की योगी सरकार द्वारा बीते साढ़े चार वर्षों में बिना किसी भेदभाव के चलाई गई तमाम जनउपयोगी योजनाओं के चलते ही अखिलेश सरकार के शासन को लेकर यह सवाल पूछा जा रहा है। वास्तव में सबका साथ, सबका विश्वास और सबका विकास की सोच के तहत प्रदेश की योगी सरकार ने गरीबों को फ्री राशन, आवास, शौचालय, उज्ज्वला गैस कनेक्शन दिया। इसके साथ ही किसानों को किसान सम्मान निधि, साढ़े चार लाख युवाओं को सरकारी नौकरी, बालिकाओं को स्नातक स्तर तक निशुल्क शिक्षा और एक लाख से अधिक महिलाओं को योगी सरकार ने सरकारी नौकरी मुहैया कराई। सोमवार को काशी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने काशी विश्वनाथ कॉरिडोर राष्ट्र को समर्पित कर दिया है। योगी सरकार की इन योजनाओं के चलते ही यह चर्चा हो रही है क्या अखिलेश सरकार का शासन समाजवादी शासन था ?

ये सवाल अखिलेश यादव द्वारा छोटे छोटे दलों का गठबंधन कर बनाई जा रही अपनी नई पोजिशनिंग के मद्देनजर महत्त्वपूर्ण है। सपा मुखिया अखिलेश यादव लंबे समय से अपनी छवि विकास पुरुष की बनाने की कर रहे हैं। परन्तु जनता की बीच में अब तक वह अपनी छवि बना नहीं सकें हैं। इसकी वजह है, विकास के जिस रास्ते पर अखिलेश चले, वह दूसरी सरकारों के एजेंडे अथवा विकास की आम धारणा से काफी अलग है।

अखिलेश यादव अपनी सरकार ने जनता के लिए व्यक्तिगत लाभ वाली योजनाओं को शुरू नहीं कर सके। राज्य में औद्योगिक निवेश को बढ़ावा देने में भी वह सफल नहीं हुए, इस कारण से वह युवाओं को रोजगार देने में नाकाम रहे हैं। उन्होंने आगरा एक्सप्रेस वे और मैट्रो योजना शुरू कराई लेकिन मुज्जफरनगर में हुए दंगे और सपा नेताओं की गुंडई एवं अराजकता ने उनके इस कार्यों पर पानी फेर दिया। इसके चलते अब गांव अखिलेश सरकार में हुए तुष्टीकरण पर लोग बहस कर रहे हैं। आईएएस दुर्गा नागपाल के साथ हुए विवाद को लेकर कैसे देशभर के आईएएस ने प्रदेश के फैसले पर सवाल उठाया था, यह अब लोगों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है। जनता के इस मत को लेकर वरिष्ठ पत्रकार अंशुमान शुक्ला कहते हैं, अखिलेश सरकार का समाजवाद सपा नेताओं की अराजकता का समाजवाद था। अखिलेश यादव के शपथग्रहण समारोह में जिस तरह का तांडव सपा नेताओं के दिखाया था, वह पूरे पांच साल तक जारी रहा था। यहीं नहीं सपा नेता अमर सिंह में सपा के राष्ट्रीय अधिवेशन में अखिलेश यादव के समाजवाद पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि मैं समाजवादी नहीं मुलायमवादी हूँ। मतलब अखिलेश सरकार में जनता का नहीं पार्टी का हित ही सबसे ऊपर रहा था। जबकि योगी सरकार में गरीबों के हित को तवज्जो दी जा रही है। 

ऐसी चर्चाओं ने तब और जोर पकड़ लिया जब, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गोरखपुर में एम्स और खाद कारखाने का उदघाटन करते हुए कहा कि लाल टोपी वालों को सत्ता चाहिए, घोटालों के लिए, अपनी तिजोरी भरने के लिए, अवैध कब्जों के लिए, माफियाओं को खुली छूट देने के लिए। लाल टोपी वालों को सरकार बनानी है, आतंकवादियों पर मेहरबानी दिखाने के लिए, आतंकियों को जेल से छुड़ाने के लिए। याद रखिए, लाल टोपी वाले यूपी के लिए रेड अलर्ट हैं यानि खतरे की घंटी हैं। लाल टोपी से उनका इशारा समाजवादी पार्टी की ओर था।

उन्होंने कहा कि पहले की सरकारों ने अपराधियों को संरक्षण देकर यूपी का नाम बदनाम कर दिया था। आज माफिया जेल में हैं और निवेशक दिल खोल कर यूपी में निवेश कर रहे हैं। पीएम मोदी ने सोमवार को भी काशी विश्वनाथ कॉरिडोर राष्ट्र को समर्पित करते हुए भी योगी आदित्यनाथ की सरकार की सराहना की। उन्होंने कह कि यही डबल इंजन का डबल विकास है। इसलिए डबल इंजन की सरकार पर यूपी को विश्वास है। प्रधानमंत्री के इस कथन के बाद ही अब प्रदेश भर में लोग अखिलेश तथा योगी सरकार में हुए विकास कार्यों की तुलना कर रहे हैं और ऐसी चर्चाओं में लोग योगी सरकार का काम अखिलेश से बहुत बेहतर मान रहे हैं। 

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पंकज चतुर्वेदी 'नमामि भारत' वेब न्यूज़ सर्विस में समाचार संपादक हैं। मूल रूप से गोंडा जिले के निवासी पंकज ने अपना करियर अमर उजाला से शुरू किया। माखनलाल लाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में परास्नातक पंकज ने काफी समय तक राष्ट्रीय राजधानी में पत्रकारिता की और पंजाब केसरी के साथ काम करते हुए राष्ट्रीय राजनीति को कवर किया है। लेकिन मिट्टी की खुशबू लखनऊ खींच लाई और लोकमत अखबार से जुड़कर सूबे की सियासत कवर करने लगे। 2017 में पंकज ने प्रिंट मीडिया से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की तरफ रुख किया। उत्तर प्रदेश के प्रतिष्ठित चैनल न्यूज वन इंडिया से जुड़कर पंकज ने प्रदेश की राजनीतिक हलचलों को करीब से देखा समझा। 2018 से मार्च 2021 तक जनतंत्र टीवी से जुड़े रहें। पंकज की राजनीतिक ख़बरों में विशेष रुचि है इसीलिए पत्रकारिता की शुरुआत से ही पॉलिटिकल रिपोर्टिंग की तरफ झुकाव रहा है। वह उत्तर प्रदेश की राजनीति की बारीक समझ रखते हैं।
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