तृप्ति रावत/ जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाली अनुच्छेद 35ए की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओंं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई 27 अगस्त तक टल गई है। जिसके विरोध में अलगाववादी संगठनों ने आज लगातार दूसरे दिन जम्मू-कश्मीर में बंद का ऐलान किया है। रविवार को कश्मीर के कई जिलों में प्रदर्शन हुए। इसके मद्देनजर प्रशासन ने भारी सुरक्षाबल की तैनाती की है। यहां तक की अमरनाथ यात्रा रोक दी गई है।
2014 में किसने की थी याचिका?
दिल्ली के एनजीओ ‘वी द सिटिजन्स’ ने 2014 में शीर्ष अदालत में अनुच्छेद 35-ए को खत्म करने की मांग वाली याचिका दायर की थी। राज्य सरकार ने उच्चतम न्यायालय के रजिस्ट्रार के पास आवेदन दायर करके उन्हें जानकारी दी थी कि वह ‘‘राज्य में आगामी पंचायत और शहरी निकाय चुनावों की तैयारियों को देखते हुए’’ इस याचिका पर सुनवाई स्थगित करवाना चाहती है।
बता दें कि अनुच्छेद 35 ए राष्ट्रपति के 1954 के आदेश से संविधान में शामिल किया गया था, जो जम्मू कश्मीर के स्थानीय निवासियों को विशेष दर्जा प्रदान करता है। इसके अंतर्गत दिए गए अधिकार ‘स्थाई निवासियों’ से जुड़े हुए हैं। यही वजह है कि अलगाववादियों समेत सभी राजनीतिक दल 35ए को लागू रखे जाने के पक्ष में है।
अनुच्छेद 35ए आखिर है क्या?
अनुच्छेद 35-ए संविधान का वह आर्टिकल है जो जम्मू कश्मीर विधानसभा को लेकर प्रावधान करता है कि वह राज्य में स्थायी निवासियों को पारभाषित कर सके। साल 1954 में 14 मई को राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने एक आदेश पारित किया था। इस आदेश के जरिए संविधान में एक नया अनुच्छेद 35 A जोड़ दिया गया. आर्टिकल 370 के तहत यह अधिकार दिया गया है। इसके तहत जम्मू-कश्मीर में बाहरी लोग संपत्ति नही खरीद सकते हैं। यहां तक की बाहरी लोग राज्य सरकार की नौकरी तक नही कर सकते हैं।
साल 1956 में जम्मू कश्मीर का संविधान बना जिसमें स्थायी नागरिकता को परिभाषित किया गया। जम्मू कश्मीर के संविधान के मुताबिक, स्थायी नागरिक वह व्यक्ति है जो 14 मई 1954 को राज्य का नागरिक रहा हो या फिर उससे पहले के 10 सालों से राज्य में रह रहा हो, और उसने वहां संपत्ति हासिल की हो। साल 2014 में एक एनजीओ ने अर्जी दाखिल कर इस आर्टिकल को समाप्त करने की मांग की। जिसको लेकर सुप्रीम कोर्ट में इसकी सुनवाई चल रही है?
आर्टिकल 35A के विरोध में दलील
यहां बसे कुछ लोगों को कोई अधिकार प्राप्त नहीं है। 1947 में जम्मू में बसे हिंदू परिवार अब तक शरणार्थी ही है। और ये शरणार्थी सरकारी नौकरी हासिल नहीं कर सकते हैं। यहां तक की सरकारी शिक्षण संस्थान में दाख़िला नहीं करवा सकते हैं। और निकाय, पंचायत चुनाव में वोटिंग राइट का अधिकार भी नहीं है। ये आर्टिकल संसद के द्वारा नहीं बल्कि राष्ट्रपति के आदेश से जोड़ा गया आर्टिकल 35A है।