अभिषेक उपाध्याय/भारत के नागरिकता कानून से पाकिस्तान के कलेजे पर चोट लगी है। पाकिस्तान बेहद ही दुखी है। उसके अखबार भारत विरोध से रंगे हुए हैं। पाकिस्तान को सबसे बड़ा दर्द इस बात का है कि भारत के नागरिकता कानून से अल्पसंख्यकों पर अत्याचार हो रहा है। ये बात वो पाकिस्तान कह रहा है जो अपने मुल्क में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार के लिए सारी दुनिया में मशहूर रहा है। जहां हिंदुओं की आबादी एक फीसदी से भी कम हो चुकी है।
भारत के इस क़ानून के मुताबिक़ पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान से भारत आने वाले हिंदू, बौद्ध, जैन, ईसाइ, सिख और पारसी समुदाय के लोगों को भारतीय नागरिकता मिल जाएगी। पर इन देशों के मुसलमानों को इससे अलग रखा जाएगा। इस कानून के विरोधियों के मुताबिक़ ये क़ानून असंवैधानिक है और मुसलमानों को निशाना बनाकर ये बिल लाया गया है। यही सोच पाकिस्तान की भी है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान इसके ख़िलाफ़ बयान दे चुके हैं। पाकिस्तानी मीडिया में इसके बारे में ख़ूब चर्चा हो रही है।
पाकिस्तान के अखबार इसे भारत की अखंडता के विरोध का रंग देने की कोशिश कर रहे हैं। पाकिस्तान का अख़बार जंग लिखता है कि छह राज्यों ने मुस्लिम विरोधी क़ानून मानने से इनकार कर दिया है। अख़बार यह भी लिखता है कि भारतीय राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के इस बिल पर दस्तख़त के बाद ये क़ानून तो बन गया है लेकिन लोगों का विरोध प्रदर्शन भारत के कई शहरों में हो रहा है। पाकिस्तान के इस अखबार को यह नही मालूम कि इस देश में दोहरी नागरिकता का प्रावधान नही है। यहां सिर्फ एकल नागरिकता होती है जिसके बारे में कानून बनाने का अधिकार केवल देश की संसद को है। पाकिस्तान दरअसल एक झूठ का कुचक्र चला रहा है।
पाकिस्तान के अख़बार के मुताबिक भारत के छह राज्य दिल्ली, मध्य प्रदेश, पंजाब, केरल, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल ने इस क़ानून को अपने राज्य में लागू करने से साफ़ इनकार कर दिया है। कई शहरों में लोग इसके विरोध में सड़कों पर उतर रहे हैं और पुलिस उनके ख़िलाफ़ लाठीचार्ज कर रही है और आंसू गैस के गोले छोड़ रही है। पूर्वोत्तर राज्य असम की राजधानी गुवाहाटी में पुलिस की गोली से दो प्रदर्शनकारियों की मौत हो चुकी है। पाकिस्तानी अख़बार में छपी खबरों के मुताबिक सीएबी के ख़िलाफ़ कई शहरों में हुए प्रदर्शन के चलते जापानी प्रधानमंत्री शिंज़ो आबे ने अपना भारत दौरा स्थगित कर दिया है।
पाकिस्तान ने इस सिलसिले में झूठ की हदें पार कर दी हैं। उसके अखबार छाप रहे हैं कि अमरीका और संयुक्त राष्ट्र ने इस बिल को मुस्लिम विरोधी क़रार दिया है। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग का कहना है कि सीएबी भेदभावपूर्ण है और इसलिए सरकार को इस क़ानून पर पुनर्विचार करना चाहिए। अख़बार नवा-ए-वक़्त के अनुसार पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने कहा कि भारत को पड़ोसी देशों में अल्पसंख्यकों की हालत पर लेक्चर देना शोभा नहीं देता। प्रवक्ता के अनुसार सारी दुनिया इस क़ानून को मुसलमान विरोधी मान रही है और ”भारत आज अल्पसंख्यकों के क़त्ल का प्रतीक बन गया है। ये सब बातें उस पाकिस्तान में की जा रही हैं जिसने हिंदुओं, ईसाइयों से लेकर शियाओं और अहमदियों पर भी भयानक अत्याचार किए हैं।
पाकिस्तान के झूठ और फ्रस्टेशन का इससे बड़ा उदाहरण दूसरा नही हो सकता है। विरोधी कह रहे हैं कि नागरिकता कानून भारत के उस मूल विचार (आइडिया ऑफ़ इंडिया) के ख़िलाफ़ है, जिसकी बुनियाद हमारे देश के स्वाधीनता संग्राम सेनानियों ने रखी थी। मगर उन्होंने कभी नागरिकता कानून को पढ़ने की जहमत नही उठाई। नागिरकता (संशोधन) के जिस विधेयक को लोकसभा ने मंज़ूरी दी है, वो 1955 के नागरिकता क़ानून में बदलाव करने के लिए है। दरअसल 1955 का क़ानून देश के दुखद बंटवारे और बड़ी तादाद में अलग-अलग धर्मों के मानने वालों के भारत से पाकिस्तान जाने और पाकिस्तान से भारत आने की भयावाह परिस्थिति में बनाया गया था। जबकि उस समय नए बने दोनों देशों के बीच जनसंख्या की पूरी तरह से अदला-बदली नहीं हो सकी थी. उस समय भारत ने तो धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक देश बनने का फ़ैसला किया. लेकिन, पाकिस्तान ने 1956 में ख़ुद को इस्लामिक गणराज्य घोषित कर दिया था।
मगर भारत को अल्पसंख्यकों पर शिक्षा देने वाला पाकिस्तान कट्टर इस्लामी मुल्क बन गया। ख़ुद को इस्लामिक गणराज्य घोषित करने वाला पाकिस्तान संभवत: दुनिया का पहला देश था। इसका नतीजा ये हुआ कि पाकिस्तान में रहने वाले ग़ैर मुस्लिम समुदायों, ख़ास तौर से हिंदुओं और ईसाइयों की मुसीबतें बढ़ने लगीं। ऐसे पीड़ितों को भारत के अतिरिक्त कहीं जगह नही मिली। इन समुदायों के लोगों ने भाग कर भारत में पनाह ली। इसका नतीजा ये हुआ कि पाकिस्तान में ग़ैर मुस्लिम समुदायों की कुल आबादी में हिस्सेदारी घट कर दो फ़ीसदी से भी कम रह गई। इन हालात में भारत के 1955 के नागरिकता क़ानून में बदलाव की ज़रूरत लंबे समय से महसूस की जा रही थी ताकि उन लोगों की मांग पूरी की जा सके, जिन्होंने अपना घर-बार छोड़ कर भारत को अपने देश के तौर पर चुना था। नागरिकता (संशोधन) विधेयक लंबे समय से चली आ रही इसी ज़रूरत को पूरा करने वाला है। नागरिकता संशोधन बिल की सबसे अहम बात ये है कि ये पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान से आकर भारत में पनाह लेने वाले हिंदुओं, सिखों, बौद्ध और जैन धर्म के अनुयायियों, ईसाइयों और पारसियों को नागरिकता हासिल करने का मौक़ा देता है। भारत इस दशकों से लंबित उत्तरदायित्व को पूरा कर रहा है। ऐसे में पाकिस्तान का दुख समझा जा सकता है। भारत का ये कदम पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर हुए भीषण अत्याचारों को बेनकाब करता है। विश्व के सामने उसकी त्रासद तस्वीर रखता है। इसीलिए पाकिस्तान को भारत के नागरिकता कानून से इस कदर कष्ट हो रहा है।