इस अनंत ब्रम्हांड में यदि कोई सबसे खूबसूरत जगह है, तो वह है हमारी पृथ्वी। क्योंकि अब तक ज्ञात जानकारी के अनुसार इस अंतहीन आकाश में यदि कहीं जीवन है, तो वह हमारी इस धरती पर ही है और वैज्ञानिक शोधों से पता चलता है कि इस वसुंधरा पर सर्वप्रथम जीवन की शुरुआत पानी के अंदर ही हुई। जी हां पानी के अंदर अर्थात सागर में, महासागर की गहराइयों में, तो इससे पता चलता है कि महासागर इस धरती के लिए कितने जरूरी है, क्योंकि जहां से जीवन की उत्पत्ति हुई हो उस जगह की अहमियत तो सबसे बढ़कर ही होगी। लेकिन आज के बढ़ते प्रदूषण के दौर में हमारे जीवनदायिनी महासागर भी बुरी तरह से प्रदूषित होते जा रहे हैं, अमूमन हमें अपने आसपास पेड़-पौधे, नदी-तालाब पर प्रदूषण का असर साफ दिखाई देता है इसलिए सभी आमो-खास उस पर ध्यान देते हैं किंतु यह सारा प्रदूषण किसी न किसी रूप में आखिरकार समुद्र की गहराइयों में पहुंचता है, पर वहां किसी का ध्यान नहीं जाता ।
महासागरों में बढ़ते इसी प्रदूषण और इससे होने वाले दूरगामी परिणामों को ध्यान में रखकर ही वर्ष 1992 में कनाडा की पहल पर अनौपचारिक रूप से अंतरराष्ट्रीय महासागर दिवस मनाया गया जिसे सन 2008 में अंतरराष्ट्रीय महासंघ U.N. से मान्यता मिली उद्देश्य था अपने महासागरों को बचाने का ।
सागर किनारे लहरों का मजा लेते हुए हम कभी भी उसके अंदर के दर्द को समझ नहीं पाते आज समुद्र के गर्भ में सैकड़ों टन मलबा किसी ना किसी रूप में पड़ा हुआ है, जिसमें सबसे ज्यादा प्लास्टिक भी शामिल है जो प्राकृतिक रूप से निष्क्रिय होने में बहुत समय लगाता है और यही वजह है कि वह अंदर ही अंदर समुद्र को भी गला रहा है, हमें यह समझने की जरूरत है, कि सागर सिर्फ पानी का भंडार ही नहीं है बल्कि वह तो पूरे पृथ्वी के वातावरण को संतुलित रखने वाली इकाई है। धरती का पूरा जीवन चक्र, मौसम सब कुछ महासागर ही तय करते हैं। हम बहुत बड़ी गलतफहमी में जी रहे हैं कि सिर्फ पेड़ पौधे लगाकर हम अपना जीवन सुरक्षित कर लेंगे, जीवन तो तब सुरक्षित होगा जब इस धरती का गर्भ सुरक्षित होगा और इस धरती का गर्भ वही महासागर है, जहां सर्वप्रथम जीवन पनपा।
आज, खासकर विकसित देश अपना सारा कचरा समुद्र में डाल रहे हैं, अगर इसकी यही रफ्तार रही तो वह दिन दूर नहीं जब पूरी पृथ्वी तहस-नहस हो जाएगी क्योंकि इसके दुष्परिणाम विभिन्न रूपों में हमें आज ही दिखाई देने लगे हैं। मौसम की बेरुख़ी हो या असमय ही सूखा, बाढ़, तूफान, बर्फबारी यह सब इसकी निशानी है, क्योंकि पूरा प्राकृतिक संतुलन महासागरों की खराब हालत की वजह से बिगड़ता जा रहा है।
समुद्र की जलधाराएं अपनी दिशा से भटक रही है। समुद्री जीवो पर इसका सीधा प्रभाव पड़ रहा है वह इसकी जल धाराओं के साथ सामंजस्य नहीं बैठा पा रहे, नतीजतन उनकी प्रजनन क्षमता पर विपरीत असर पड़ रहा है। भविष्य में बहुत से समुद्री जीव विलुप्त होने वाले हैं, क्योंकि वह इस असंतुलन में अपने आप को नहीं ढाल पा रहे। इसके अलावा महासागरों में बढ़ते प्रदूषण का सीधा असर हमारी सेहत पर भी नजर आने लगा है जो भी मनुष्य मछली का सेवन करते हैं वह भी नई-नई तरह की बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं, क्योंकि समुद्र में घुला प्रदूषण किसी न किसी रूप में मछलियों का भोजन बनता है उसी के साथ समुद्र में पहुंचे प्लास्टिक का भी विभिन्न रूपों में मछलियां सेवन कर रही है, वह उसे ठीक से पचा नहीं पाती और उसी मछली को खा कर मनुष्य बीमारी की चपेट में भी आ रहे हैं ।
कुल मिलाकर हम मनुष्य विकास की अंधी दौड़ में अपना जीवन, पर्यावरण, पेड़-पौधे, धरती-आकाश सब कुछ दाव पर लगा चुके हैं, पृथ्वी का लगभग तीन चौथाई भाग जो की महासागरों के रूप में निर्मल दिखाई देता है अब हम उसे भी प्रदूषण के हवाले करने में लगे हुए हैं, अब ज़रूरत है इसके भयानक परिणामो को समझकर सही दिशा में समुचित कदम उठाने की ताकि विश्व महासागर दिवस, दिवस ही बनकर ना रह जाए बल्कि हमारे सुंदर और सुरक्षित भविष्य के लिए कुछ अच्छी सौगात भी लेकर आए।
एजेंद्र कुमार, कंसलटेंट, लोकसभा टीवी