लखनऊ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी के बाद भी हाल ही में संपन्न् उपचुनावों में बीजेपी अपनी हार को नही बचा सकी। कैराना और नूरपुर में तो सिंपैथी भी काम ना आईष भाजपा के लिए नूरपुर और कैराना की हार ठीक वैसे ही है जेसा कि फूलपुर और गोरखपुर की हार। लाख प्रयासों के बाद भी उत्तर प्रदेश की नूरपुर विधानसभा और कैराना लोकसभा उपचुनाव में BJP को मिली करारी हार के बाद यूपी BJP में नेतृत्व परिवर्तन की मांग उठने लगी है। सोशल मीडिया से जुड़े कार्यकर्ताओं ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, प्रदेश अध्यक्ष डॉ महेंद्र नाथ पांडेय, संगठन महामंत्री सुनील बंसल के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। गौरतलब है कि कैराना और नूरपुर में भाजपा ने योगी के 17 कैबिनेट मंत्रियों और साथ ही केन्द्र सरकार के 3 मंत्रियों को भी मैदान में उतार दिया था। लेकिन जब कार्यकर्ताओं ने ही इन चुनावों में अपने आपको किनारा कर लिया तो बडे बडे नेता क्या काम आएँगे।
कार्यकर्ताओं का आरोप है कि कि भाजपा का शीर्ष नेतृत्व अहंकार और सत्ता मद में चूर हो चुका है। आएदिन कार्यकर्ताओं को अपमानित किया जा रहा है। हाल ही में एक कार्यकर्ता का संगठन मंत्री सुनील बंसल के फोन पर बातचीत का टेप भी वायरल हुआ था जिसमें सुनील बंसल कार्यकर्ता को फटकार रहे थे। दबी जुबान से कार्यकर्ता स्वीकार कर रहे हैं कि नेतृत्व ने कार्यकर्ताओं के अपमान का नित नया कीर्तिमान स्थापित किया जा रहा है उसी से नाराज होकर यूपी BJP के कार्यकर्ता चुनाव से खुद को अलग कर ले रहे हैं। शायद शीर्ष नेतृत्व को भी इस बात का अंदाजा था कि गठबंधन के आगे भाजपा कमजोर साबित होगी तभी उसने एक साथ इतने मंत्रियों को कैराना और फूलपुर बचाने के लिए प्रचार अभियान में झोंक दिया लेकिन नतीजा वही हुआ जो गोरखुपर, और फूलपुर उपचुनाव के समय हुआ था।
जानकारों का कहना है कि संगठन पर एक व्यक्ति का कब्जा होने से पार्टी संविधान की धज्जियां खुलेआम उड़ रही है। मोर्चा-प्रकोष्ठ भंग कर वर्षों से गठन नहीं हुआ। सरकार में लगातार उपेक्षा जारी है। हार पर समीक्षा करने वाले बताते हैं कि अब चुनाव में भाजपा को केंद्र और यूपी सरकार के कामकाज के आधार पर वोट मिल रहा है। संगठन उससे भी दो कदम आगे है। अभी भी भारतीय जनता पार्टी के नेता घमंड छोड़ कर कार्यकर्ताओं को अपमानित करना बंद नहीं किये तो लोकसभा 2019 के चुनाव में उपचुनावों की पुनरावृत्ति रोकना मुश्किल हो जाएगा।