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क्रिसमस दिवस (25 दिसम्बर) पर विशेष लेख

– डा0 जगदीश गांधी, शिक्षाविद् एवं संस्थापक-प्रबन्धक

सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ

(1) इस धरती का परमपिता परमात्मा एक है:-

                क्रिसमस या बड़ा दिन ईसा मसीह या यीशु के जन्म की खुशी में 25 दिसम्बर को मनाया जाने वाला पर्व है। आधुनिक क्रिसमस की छुट्टियों में एक दूसरे को उपहार देना, चर्च मंे प्रार्थना समारोह और विभिन्न सजावट करना शामिल है। इस सजावट के प्रदर्शन में क्रिसमस का पेड़, रंग-बिरंगी रोशनियाँ, जन्म के झाँकी और हॉली आदि शामिल हैं। सांता क्लॉज को (जिसे क्रिसमस का पिता भी कहा जाता है) क्रिसमस पर बच्चों के लिए तोहफे लाते हैं। क्रिसमस को सभी ईसाई लोगों सहित गैर-ईसाई लोग भी इसे एक धर्मनिरपेक्ष तथा सांस्कृतिक उत्सव के रूप मे मनाते हैं। क्रिसमस के दौरान उपहारों का आदान प्रदान, सजावट और छुट्टी के दौरान पिकनिक के कारण यह संसार का एक बड़ा महोत्सव बन गया।

(2) परम पिता परमात्मा सारी सृष्टि का रचयिता है:-

                ईसाई धर्म के अनुयायी इस बात को स्वीकार करते हैं कि इस सारी सृष्टि का ईश्वर एक है लेकिन वे ईश्वर के व्यक्तित्व को तीन रूपों में मानते हैं:-पहला रूप – परमपिता इस सारी सृष्टि का रचयिता है और इसको संचालित करने वाला शासक भी है। वह एक है। वह सारे जगत का पिता है। सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापी, परम पवित्र, परम न्यायी तथा परम करूणामय है। वह अनादि, अनन्त तथा पूर्ण है। वही सर्वश्रेष्ठ ईश्वर सब का परमेश्वर है। दूसरा रूप – परमपिता ने मानव देह में अपने को ईशु के रूप में प्रगट किया ताकि पतित हुए सभी मनुष्यों को पापों से बचाया जा सके। ईशु ने मानव जाति के पापों की कीमत अपनी जान देकर चुकाई। यह मनुष्य और पवित्र परमपिता के मिलन का मिशन था जो ईशु की कुर्बानी से पूरा हुआ। एक सृष्टिकर्ता परमपिता होकर उन्होंने पापियों को नहीं मारा वरन् पाप का इलाज किया। वे भगवान और मनुष्य के बीच की कड़ी हैं। ईशु ने मानव जाति के कल्याण के लिए तरह-तरह के कष्ट झेले और अन्त में सूली पर लटककर अपने प्राण त्याग दिये। प्रभु ईशु ने अपने जीवन के द्वारा प्रेम, करूणा तथा पवित्रता की शिक्षा दी।

(3) बाइबिल केवल ईसाईयों के लिए ही नहीं वरन् सारी मानव जाति के लिए है:-

                तीसरा रूप – पवित्र आत्मा परमपिता परमात्मा का तीसरा व्यक्तित्व है जिनके प्रभाव में व्यक्ति अपने अन्दर परमपिता परमात्मा का अहसास करता है। पवित्रात्मा मनुष्य का चित्त शुद्ध करती है और उसे भगवान के नजदीक ले जाती है। वह भगवान की प्रेरणा तथा ईश्वर की शक्ति है। वह प्रेम, आनन्द, विश्वास, भक्ति जैसे दैवी गुणों को विकसित करती है। जब तक पवित्रात्मा की कृपा न होगी, तब तक मनुष्य दोषों से मुक्त होकर भगवान के चरणों में नहीं जा सकेगा। बाइबिल पवित्र ग्रन्थ अर्थात ईश्वरीय पुस्तक है। ईशु की आत्मा में हिब्रू भाषा में पवित्र बाईबिल का ज्ञान आया। ईशु प्रभु से तथा आपस में एक-दूसरे से प्रेम करने का सन्देश छिप-छिप कर लोगों को देते थे। ईशु ने कहा धरती का साम्राज्य उनका होगा जो दयालु होंगे तथा दूसरांे पर करूणा करेंगें। बाईबिल के ज्ञान का अनेक भाषाओं में अनुवाद हुआ और यह ईश्वरीय ज्ञान संसार भर में फैल गया। करूणा का यह गुण केवल ईसाईयों के लिए ही नहीं है बल्कि सारी मानव जाति के लिए है।

(4) प्रभु की इच्छा तथा आज्ञा को जानना ही मानव जीवन का परम उद्देश्य है:-

                ईशु का जन्म आज से लगभग 2000 वर्ष पूर्व येरूशलम के पास बैथेलहम (फिलिस्तीन-इजराइल) में हुआ था। उनके पिता जोसेफ बढ़ई एवं मां मरियम अत्यन्त ही निर्धन थे। ईशु को राजा के आदेश से जब सूली दी जा रही थी तब वे परमपिता परमात्मा से प्रार्थना कर रहे थे -हे परमात्मा! तू इन्हें माफ कर दे जो मुझे सूली दे रहे हैं क्योंकि ये अज्ञानी हैं अपराधी नहीं। ईशु ने छोटी उम्र में ही प्रभु की इच्छा तथा आज्ञा को पहचान लिया था फिर धरती और आकाश की कोई शक्ति उन्हें प्रभु का कार्य करने से रोक नहीं सकी। जिन लोगों ने ईशु को सूली पर चढ़ाया देखते ही देखते उनके कठोर हृदय पिघल गये। सभी रो-रोकर अफसोस करने लगे कि हमने अपने रक्षक को क्यों मार डाला? ईशु ने कहा धरती का साम्राज्य उनका होगा जो दयालु होंगे तथा दूसरांे पर करूणा करेंगे। ईशु जीवन के अन्तिम क्षणों में संसार में ‘करूणा’ का सागर बहाकर चले गये। परमात्मा ने पवित्र पुस्तक बाईबिल की शिक्षाओं के द्वारा ईशु के माध्यम से करूणा का सन्देश सारी मानव जाति को दिया। इसलिए हमें भी ईशु की तरह अपनी इच्छा नहीं वरन् प्रभु की इच्छा और प्रभु की आज्ञा का पालन करते हुए प्रभु का कार्य करना चाहिए।

(5) आत्मा परमात्मा का अंश है उसे परमात्मा को सौंप दो:-

                ईसाई धर्म का बुनियादी विश्वास यह है कि परमपिता परमात्मा सारे जगत का पिता है। हम सब पृथ्वीवासी उस परमपिता परमात्मा की संतानें हैं। हम सब भाई-भाई हैं। हमें एक-दूसरे के साथ करूणा का, दया का, प्रेम का तथा अपनेपन का व्यवहार करना चाहिए। प्रभु ईशु ने अपने जीवन से, अपने व्यवहार से, अपने कर्म से, अपने वचन से और अपने मन से इस प्रेम की ही शिक्षा दी है। ईशु ने कहा कि जो राजा का है उसे राजा को दे दो तथा जो परमात्मा का है उसे परमात्मा को सौंप दो। अर्थात सांसारिक चीजों पर राजा का अधिकार हो सकता है लेकिन हमारी आत्मा परमात्मा की है उसे परमात्मा को ही सौंपा जा सकता है।

 (8) विद्यालय है सब धर्मों का एक ही तीरथ-धाम:-           

                नोबेल शान्ति पुरस्कार प्राप्त श्री नेल्सन मण्डेला के अनुसार विश्व में शिक्षा सबसे शक्तिशाली हथियार है जिससे सामाजिक बदलाव लाया जा सकता है। विद्यालय एक ऐसा स्थान है जहाँ सभी धर्मों के बच्चे तथा सभी धर्मों के टीचर्स एक स्थान पर एक साथ मिलकर एक प्रभु की प्रार्थना करते हैं। प्रार्थना का यह ही सही तरीका है। सारी सृष्टि को बनाने वाला और संसार के सभी प्राणियों को जन्म देने वाला परमात्मा एक ही है। सभी अवतारों एवं पवित्र ग्रंथों का स्रोत एक ही परमात्मा है। हम प्रार्थना कहीं भी करें, किसी भी भाषा में करें, उनको सुनने वाला परमात्मा एक ही है। अतः परिवार तथा समाज में भी स्कूल की तरह ही सभी लोग बिना किसी भेदभाव के एक साथ मिलकर एक प्रभु की प्रार्थना करें तो सबमें आपसी प्रेम भाव भी बढ़ जायेगा और संसार में सुख, एकता, शान्ति, करूणा, त्याग, न्याय एवं अभूतपूर्व समृद्धि आ जायेगी।

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