अभिषेक उपाध्याय। पाकिस्तान जम्मू कश्मीर से ३७० के हटने को लेकर छटपटा रहा है। वो तमाम तरीकों से इसका तोड़ निकालने की कोशिश में है। वह लगातार इस बात का राग अलाप रहा है कि भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रस्तावों को नज़रअंदाज किया है। अनुच्छेद 370 कश्मीर के साथ हर तरह से जुड़ा हुआ है। यह सुरक्षा परिषद द्वारा सुझाई गई व्यवस्था थीर। जब तक यह समस्या ज़मीनी हक़ीकत के आधार पर तय नहीं होती, यह (विशेष दर्जा) बना रहेगा और इस क्षेत्र को भारत का हिस्सा नहीं माना जाएगा। उसका दावा है कि इसे बदलने का मतलब है कि आप सुरक्षा परिषद या संयुक्त राष्ट्र के अधिकार क्षेत्र में दखल कर रहे हैं।
मगर सवाल यह भी है कि पाकिस्तान की इस रूदाली से किसे फर्क पड़ता है। पाकिस्तान आज की तारीख में दुनिया भर में अलग थलग पड़ चुका है। पर अब उसकी उम्मीद कश्मीर के भीतर के कुछ राजनीतिक दलों पर टिक गई हैं। ये दल गुपकार गैंग का हिस्सा हैं। नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला ने जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे के संबंध में ‘गुपकार घोषणा’ के अगुवा रहे हैं। गुपकार घोषणा का सीधा सा मतलब कश्मीर में अनुच्छेद 370 की बहाली है। उनके साथ इस मसले पर जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री और पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी हैं। यह प्रस्ताव राष्ट्र के हितों पर पहली ही नजर में सीधा आघात दिखाई देता है। प्रस्ताव में में कहा गया है कि पार्टियों ने सर्वसम्मति से फैसला किया है कि जम्मू-कश्मीर की पहचान, स्वायत्तता और उसके विशेष दर्जे को संरक्षित करने के लिए वे मिलकर प्रयास करेंगी। इस प्रस्ताव पर नैशनल कॉन्फ्रेंस के अलावा पीडीपी, पीपुल्स कॉन्फ्रेंस और कुछ छोटे दल शामिल हैं। इससे पहले सभी हस्ताक्षरकर्ता दल 22 अगस्त को आपस में मिले थे और जम्मू-कश्मीर के विशेष राज्य के दर्जे की बहाली को लेकर संकल्प लिया था।
पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान ख़ान कश्मीर मुद्दे के अंतराष्ट्रीयकरण की कोशिशों में जुटे हुए हैं। ऐसे में गुपकार गैंग उनका ये काम भी आसान करने की कवायद में है। इमरान ने इस मुद्दे पर तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन को भी अपने साथ लिया हुआ है। तुर्की ने पाकिस्तान से कहा है कि वो वर्तमान हालात में पाकिस्तान के साथ है। कश्मीर मसले पर तुर्की पहले भी पाकिस्तान का साथ देता रहा है। पाकिस्तान संयुक्त राष्ट्र के अलावा कई देशों से इस मामले में समर्थन हासिल करने की कोशिश कर रहा है। इस सबके बीच गुपकार गैंग की सक्रियता कई अहम सवाल खड़े करती है।
इस गैंग के राजनीतिक पहलू बेहद चिंताजनक हैं। अब इस गैंग में देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस के होने की चर्चा ने हंगामा खड़ा कर दिया है। हालांकि विवादों के बाद कांग्रेस इस खेमे से अपना दामन बचाने की कवायद में है मगर इस बीच राष्ट्रवाद के समर्थकों के हमले तेज हो चुके हैं। महबूबा मुफ्ती की रिहाई से गुफकार गैंग की गतिविधियों में एकदम से तेजी आ गई। महबूबा मुफ्ती की रिहाई के बाद यह चर्चा शुरू हो गई थी कि क्या गुपकार समझौते के तहत 370 को दोबारा मुद्दा बनाया जाएगा। सच्चाई यही है। इस समझौते पर साथ आने वाली पार्टियां हर हाल में कश्मीर में 370 की वापसी की लड़ाई लड़ रही हैं। कांग्रेस अपने स्टैंड के कारण आलोचनाओं से घिर गई है।
गुपकार गैंग का विरोध करने के पीछे काफी मजबूत तर्क हैं। इस गैंग को अलगाववादियों का खुला समर्थन है। ये वे अलगाववादी हैं जिनके बच्चे विदेशों के बड़े बड़े स्कूलों मे पढ़ रहे हैं। वहां नौकरी कर रहे हैं। मगर ये लोग कश्मीर की आम जनता को बरगला रहे हैं। इस बारे में खुद गृह मंत्रालय ने तस्वीर साफ कर दी थी। गृह मंत्रालय की जानकारी के मुताबिक अलगाववादी नेता आए दिन स्कूलों व कालेजों को बंद करने का ऐलान करते हैं। बच्चों और युवाओं को पढ़ाई से दूर कर उन्हें पत्थरबाजी के लिए उकसाते हैं। जबकि खुद अपने बच्चों को विदेशों में भेज कर अच्छी से अच्छी शिक्षा का बंदोबस्त कर रहे हैं। उनके परिवार के लोग कश्मीर घाटी से दूर बड़ी संख्या में विदेशों में बसे हुए हैं। छानबीन के बाद ऐसे अलगाववादी नेताओं के चेहरे सामने आने लगे हैं, जो अपने बच्चों का भविष्य संवारकर घाटी के बच्चों के हाथों में पत्थर थमा रहे हैं।
इस बारे में आकंड़े भी सामने आए थे। इन आंकड़ों के मुताबिक विदेश में 112 अलगाववादियों के 220 बच्चे मजे की जिंदगी जी रहे हैं। कश्मीर घाटी में सक्रिय 112 अलगाववादी नेताओं के कम से कम 220 बच्चे, रिश्तेदार या करीबी विदेशों में पढ़ रहे हैं या सुकून की जिंदगी जी रहे हैं। पढ़ाई पूरी करने के बाद इनमें से ज्यादातर बच्चे विदेश में ही नौकरी कर रहे और रह भी रहे हैं। इन बच्चों को न तो कश्मीरियत से मतलब है और न ही घाटी में पनप रहे आतंकवाद से इनका कोई नाता है। इसी से इन अलगाववादी नेताओं के दोहरे चरित्र का अंदाजा लगाया जा सकता है, जो बात-बात पर स्थानीय युवाओं को कानून हाथ में लेने के लिए उकसाते हैं।
इस कड़ी में सबसे अव्वल नाम हुर्रियत कांफ्रेंस के चेयरमैन सैय्यद अली शाह गिलानी का है। गिलानी के बेटे नईम गिलानी ने न सिर्फ पाकिस्तान से एमबीबीएस की पढ़ाई की, बल्कि अब वहीं रावलपिंडी में डाक्टर की पैक्टिस कर रहा है। गिलानी की बेटी सऊदी अरब में शिक्षक और दामाद इंजीनियर है। एसएएस गिलानी के दामाद अल्ताफ अहमद शाह की एक बेटी तुर्की में पत्रकार और दूसरी पाकिस्तान में मेडिकल की पढ़ाई कर रही है। एसएएस गिलानी के एक दूसरे दामाद जहूर गिलानी का बेटा सउदी अरब में है और वहीं एयरलाइंस में नौकरी कर रहा है। इसी तरह हुर्रियत मीरवाइज गुट के मीरवाइज उमर फारूख की बहन रुबिया फारूख अमेरिका में डाक्टर है।
कश्मीर में कट्टर अलगाववाद का चेहरा रही और फिलहाल जेल में बंद दुखतरन-ए-मिल्लत की प्रमुख आसिया अंद्राबी का एक बेटा मलेशिया में पढ़ रहा है। दूसरा बेटा आस्ट्रेलिया में है। आसिया अंद्राबी की बहन मरियम अंद्राबी भी अपने परिवार के साथ मलेशिया में रहती है। यही वजह है कि गुपकार गैंग के एकजुट होने के सवाल ने देश की राजनीति में भूचाल ला दिया है। केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कांग्रेस पर इसी सवाल पर जमकर हमला किया। प्रसाद ने राहुल गांधी और सोनिया गांधी से सवाल करते हुए कहा कि क्या वह धारा 370 पर फारूख के साथ या हैं या फिर खिलाफ? गुपकार डिक्लेरेशन का मुख्य मकसद है 370 को दोबारा लागू कराना। इसके लिए वो चीन की मदद भी मांग रहे हैं।
कश्मीर में हो रहे पंचायत चुनाव में गुपकार गठबंधन का समर्थन करने को लेकर बीजेपी लगातार कांग्रेस को आड़े हाथ ले रही है। बीजेपी की ओर से टॉप लेवल पर कांग्रेस पर अटैक किया गया है। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कांग्रेस पर निशाना साधा है। उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी से कहा कि वे जनता के सामने अपना रुख साफ करें। अमित शाह ने ट्वीट किया, गुपकार गैंग ग्लोबल हो रहा है! वे चाहते हैं कि विदेशी ताकतें जम्मू और कश्मीर में हस्तक्षेप करे। गुपकार गैंग भारत के तिरंगे का भी अपमान करता है। क्या सोनिया जी और राहुल जी गुपकार गैंग की ऐसी चालों का समर्थन करते हैं? उन्हें भारत के लोगों को अपना रुख स्पष्ट करना चाहिए। उन्होंने आगे लिखा कि कांग्रेस और गुपकार गैंग जम्मू-कश्मीर को आतंक और अशांति के युग में वापस ले जाना चाहते हैं। वे अनुच्छेद 370 को हटाकर दलितों, महिलाओं और आदिवासियों के अधिकारों को छीनना चाहते हैं। यही कारण है कि उन्हें हर जगह लोगों द्वारा अस्वीकार किया जा रहा है। शाह ने ट्वीट किया कि जम्मू और कश्मीर हमेशा से भारत का अभिन्न अंग रहा है और रहेगा। भारतीय लोग अब हमारे राष्ट्रीय हित के खिलाफ अपवित्र ग्लोबल गठबंधन ’को बर्दाश्त नहीं करेंगे। या तो राष्ट्रीय भावनाओं के अनुरूप रहे अन्यथा लोग इसे डुबो देंगे।
समस्या इन नेताओं की बयानबाजी से भी है। महबूबा मुफ्ती ने भी ये भी कहा कि जब तक कश्मीर का झंडा नहीं तब तक तिरंगा नहीं। ऐसे में सवाल यह भी है कि अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती जैसे राजनेता अपने अपराधों को कवर करने की कोशिश कर रहे हैं। गुपकार घोषणा की आड़ में वे घाटी में उपद्रव की योजना बना रहे हैं। इस बीच कश्मीर में काफी कुछ नया भी हो रहा है। हुर्रियत में विभाजन के बाद से कट्टरपंथी गुट की अगुआई कर रहे सैयद अली शाह गिलानी की विदाई अलगाववादी विचारधारा को झटके से कम नहीं है। निश्चित तौर पर यह एकाएक नहीं हुआ। जम्मू कश्मीर से 370 के खात्मे और राज्य के पुनर्गठन के बाद कश्मीर जिस तरह बदला है, उसकी अपेक्षा न पाकिस्तान ने की थी और न ही गिलानी जैसे अलगाववादियों ने।
गिलानी ने अपने इस्तीफे के दौरान जिस तरह उसके खिलाफ आवाज उठाने वाले अलगाववादियों पर अनुशासनहीनता, पैसे की गड़बड़ी और पाकिस्तानी सरकार के इशारे पर नाचने का आरोप लगाया है, वह उसी खीझ का ही असर दिख रहा है। साथ ही उसने कश्मीर के युवाओं को नशे के जहर तक के आरोप लगाए हैं। इस झगड़े से एक बार फिर पाकिस्तान और उसका एजेंडा बेनकाब हो गया। बीते साल जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम लागू होने के बाद कश्मीर की आवाम ने जिस तरह अलगाववादी एजेंडे से किनारा आरंभ किया, आइएसआइ और अन्य पाक परस्तों ने इसका ठीकरा हुर्रियत पर फोडऩा आरंभ कर दिया। पाकिस्तान में बैठे उनके आका लगातार आंदोलन चलाने के लिए दबाव बना रहे थे और खफा होकर हुर्रियत की फंडिंग में भी कटौती कर दी थी। ऐसे मे कश्मीर में अलगाववादी तत्व धीरे धीरे हाशिए पर जा रहे हैं। गुपकार गैंग की बड़ी मुसीबत यह भी है।