10 मई को खुलेगे बद्रीनाथ के कपाट,सुबह  4.15 बजे से होंगे  दर्शन
संतोषसिंह नेगी/ देवभूमि में विश्व  प्रसिद्ध बद्रीनाथ धाम के कपाट इस साल 10 मई  को सुबह  4.15 बजे खोल दिए जाएंगे। श्रद्धालु 10 मई से भगवान बदरीनाथ नारायण के  दर्शन कर  उच्च हिमालयी क्षेत्र में स्थित होने के कारण सर्दियों में भारी बर्फवारी की चपेट में रहते हैं और इसलिए उन्हें श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए बंद कर दिया जाता है लेकिन पौराणिक कथाओं के अनुसार छः माह  मानव और छः माह देवता बद्रीनाथ की पूजा-अर्चना करते है।
बद्रीनारायण मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है, जो कि उत्तराखंड में चमोली जिले के बद्रीनाथ शहर में स्थित है. बद्रीनाथ मंदिर, चारधाम यात्रा  सर्दियों में मंदिर के कपाट बंद होने के बाद दोबारा 10 मई को श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए जाएंगे  हर साल अप्रैल-मई से अक्टूबर-नवंबर तक चलने वाली चारधाम यात्रा को गढ़वाल हिमालय की आर्थिकी की रीढ़ माना जाता है।

भगवान बद्रीनारायण  का इतिहास

बद्रीनाथ मंदिर अलकनंदा नदी के बाएं तट पर नर और नारायण नामक दो पर्वत श्रेणियों के बीच स्थित है. ये पंच-बदरी में से एक बद्री हैं. उत्तराखंड में पंच बदरी, पंच केदार और पंच प्रयाग पौराणिक दृष्टि से और हिन्दू धर्म की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं. यह मंदिर भगवान विष्णु के रूप बद्रीनाथ को समर्पित है भौगोलिक दृष्टि से यह स्थान हिमालय पर्वतमाला के ऊँचे शिखरों के मध्य, गढ़वाल क्षेत्र में, समुद्र तल से 3,133 मीटर (10,279 फ़ीट) की ऊँचाई पर स्थित है. बद्रीनाथ मन्दिर में भगवान विष्णु के एक रूप ‘बद्रीनारायण’ की पूजा होती है. यहां उनकी 1 मीटर (3.3 फीट) लंबी शालिग्राम से निर्मित मूर्ति है जिसके बारे में मान्यता है कि इसे आदि गुरू शंकराचार्य ने 8वीं शताब्दी में समीपस्थ नारद कुण्ड से निकालकर स्थापित किया था. इस मूर्ति को कई हिंदुओं द्वारा विष्णु के आठ स्वयं व्यक्त क्षेत्रों में से एक माना जाता है.

बद्रीनाथ नारायण  की स्थापना

पौराणिक कथा के अनुसार यह स्थान भगवान शिव भूमि के रूप में व्यवस्थित था. भगवान विष्णु अपने ध्यानयोग के लिए एक स्थान खोज रहे थे और उन्हें अलकनंदा के पास शिवभूमि का स्थान बहुत भा गया. उन्होंने वर्तमान चरणपादुका स्थल पर (नीलकंठ पर्वत के पास) ऋषि गंगा और अलकनंदा नदी के संगम के पास बालक रूप धारण किया और रोने लगे. उनके रोने की आवाज़ सुनकर माता पार्वती और शिवजी उस बालक के पास आये. और उस बालक से पूछा कि तुम्हे क्या चाहिए. तो बालक ने ध्यानयोग करने के लिए शिवभूमि का स्थान मांग लिया. इस तरह से रूप बदल कर भगवान विष्णु ने शिव पार्वती से शिवभूमि को अपने ध्यानयोग करने हेतु प्राप्त कर लिया. यही पवित्र स्थान आज बद्रीविशाल के नाम से भी जाना जाता है.

 बद्रीनारायण का नाम कैसे पड़ा 

पुराणों के अनुसार  एक रोचक कथा है, मान्‍यता है कि एक बार देवी लक्ष्मी, भगवान विष्णु से रूठकर मायके चले गयी. तब भगवान विष्णु देवी लक्ष्मी को मनाने के लिए तपस्या करने लगे. जब देवी लक्ष्मी की नाराजगी दूर हुई. तो देवी लक्ष्मी भगवान विष्णु को ढूंढते हुए उस जगह पहुँच गई. जहाँ भगवान विष्णु तपस्या कर रहे थे. उस समय उस स्थान पर बदरी (बेड) का वन था. बेड के पेड़ में बैठकर भगवान विष्णु ने तपस्या की थी. इसलिए लक्ष्मी जी ने भगवान विष्णु को ‘बद्रीनारायण’ नाम दिया.

बद्रीनाथ में धार्मिक स्थल अलकनंदा के तट पर स्थित अद्भुत गर्म झरना जिसे तप्त कुंड’ कहा जाता है.बद्रीनाथ से नजर आने वाला बर्फ़ से ढका ऊंचा शिखर नीलकंठ, जो ‘गढ़वाल क्वीन’ के नाम से जाना जाता है.पौराणिक कथाओं में उल्लेखित एक ‘सांप’ शिला है.शेषनाग की कथित छाप वाला एक शिलाखंड ‘शेषनेत्र’ है.भगवान विष्णु के पैरों के निशान हैं- ‘चरणपादुका’

कैसे जाएं बद्रीनाथ धाम

उत्तराखंड के हरिद्वार,  ऋषिकेश,  देहरादून,  देवप्रयाग,   श्रीनगर,   रुद्रप्रयाग, कर्णप्रयाग, चमोली और जोशीमठ  होते हुए बद्रीनाथ पहुंचते है, और यहां से आगे बढ़ते हुए भारत-चीन सीमा पर स्थित ग्राम माणा में पहुंचकर समाप्त हो जाती है

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