नयी दिल्ली। कैंसर आज एक महामारी की तरह फैलने वाला रोग बन चुका है और इसके महँगे इलाज ने कई परिवारों को बर्बाद कर दिया है लेकिन एक अस्पताल ऐसा भी है जहाँ कैंसर रोगियों का लगभग मुफ्त इलाज हो रहा है। दवाईयों से ज्यादा खानपान में बदलाव और प्राकृतिक चिकित्सा द्वारा यहाँ से कई मरीज ठीक होकर गए हैं। राष्ट्रीय राजधानी का एक परमार्थ अस्पताल कैंसर मरीजों का आयुर्वेद, योग तथा आहार और जीवन शैली में बदलाव के माध्यम से उपचार कर रहा है। चार फरवरी के विश्व कैंसर दिवस से पहले पश्चिम पंजाबी बाग के आयुर्वेदिक कैंसर ट्रीटमेंट हॉस्पिटल के संस्थापक ने कहा कि यह अस्पताल इस बीमारी से लड़ने में जागरुकता फैला रहा है तथा कई मरीज अपना अनुभव बताकर इसके नाम को फैलाने में मदद कर रहे हैं।
इसके संस्थापक अध्यक्ष अतुल सिंघल ने कहा, ‘‘कई मरीज एलौपैथिक उपचार में सारी उम्मीदें गंवाने के बाद हमारे पास आते हैं। हम चतुष आयामी –जीवन शैली और खान-पान की आदत में बदलाव, आयुर्वेदिक दवाइयां और योग — उपचार का इस्तेमाल करते हैं।’’ कैंसर पर आयुर्वेदिक दवाओं के असर के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, ‘‘हमारे मरीज हमारे सबसे बड़े गवाह हैं। उन्हें फायदा महसूस होता है और वे दूसरों को बताते हैं या वीडियो बनाकर उसे ऑनलाइन पोस्ट कर देते हैं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘दवाओं के तौर पर हम पंचगव्य -गाय के पांच उत्पादों का इस्तेमाल करते हैं और हम स्वास्थ्य लाभ में सहयोग के लिए योग का उपयोग करते हैं।’’ सिंघल ने कहा, ‘‘हम उनकी जीवन शैली और खान-पान की आदत बदल देते हैं और हम उनसे इलाज के वास्ते उनमें कुछ को भूल जाने को कहते हैं। अतएव हम उन्हें गेहूं के बजाय जौ, लाल मिर्च के बजाय काली मिर्च, चीनी के बजाय गुड़ खाने को कहते हैं। ’’
52 वर्षीय सिंघल ने बताया कि 2011 में अपनी मां को गंवाने के बाद उन्होंने यह अस्पताल खोला। उन्होंने कहा, ‘‘मेरी मां तीन साल तक कैंसर से संघर्ष करती रही और आखिरकार वह चल बसीं। इसलिए मैं इसके लिए कुछ करना चाहता था और मुझे आयुर्वेद की प्राचीन चिकित्सा पद्धति पर विश्वास है। इसलिए 2013 में हमने पहला आयुर्वेदिक कैंसर ट्रीटमेंट रिसर्च सेंटर शुरु किया जो 2015 में आयुर्वेदिक कैंसर ट्रीटमेंट अस्पताल बन गया। ’’ सिंघल के अनुसार न्यास द्वारा संचालित इस अस्पताल में 20 बिस्तर हैं । यहां तीन स्थायी चिकित्सक हैं तथा अन्य संबंधित कार्यों के लिए करीब 15 लोग हैं। उन्होंने कहा, ‘‘मरीज की पृष्ठभूमि या उसके परिवार के आर्थिक दर्जे के विपरीत हम बस 11000 रुपये में उपचार करते हैं। यदि कोई मरीज निर्धन है तो हम उससे, इससे भी कम पैसे मांगते हैं या मुफ्त इलाज करते हैं। हमारा विचार इसे परमार्थ स्वरुप में रखना है न कि वाणिज्यिक रुप देना है।’’