
परम्परा, प्रगति और प्रयोग का समावेश नई प्रगति, प्रखरता, प्रबलता का सूचक है। नवीन सोच संस्कारों एवं राष्ट्र निर्माण के उद्देश्य से जब जुड़ती है तब एक नई क्रांति का सूत्रपात करती है और एक ऐसे नवीन इतिहास की रचना करती है जिसमें अपार संभावनायें दिखाई देती हैं। संभावनायें, संस्कारों को बनाये रखने के साथ प्रगति की राह पर चलने और अंधेरे को चीर नए युग का सूरज उगाने की। एक ऐसा सूरज जिसमें शिक्षा, शिक्षण, शिक्षक, प्रशिक्षण के साथ परिक्षण और प्रयोग राष्ट्र निर्माण की नई परिभाषा गढ़ते हैं। यह परिभाषा कोई एक दिन का कार्य नहीं हो सकता। इसमें दिन-रात खपते हैं। उसी दिन रात की सुखद अनुभूति है क्रांतिधरा मेरठ का स्वामी विवेकानन्द सुभारती विश्वविद्यालय। भारतीय गौरवशाली परम्पराओं को जन गण मन तक पहुंचाने वाला। सुन्दर भारत की परिकल्पना को साकार करने वाला विश्वविद्यालय, जिसका उद्देश्य है कि हर युवा शिक्षित हो और शिक्षा उसमें सेवा का भाव उत्पन्न करें। सेवा, संस्कारों का मार्ग प्रशस्त करें। संस्कार, राष्ट्रीयता और राष्ट्र प्रेम की परिणीति बने।
ऐसी सोच और समझ किसी साधारण व्यक्ति का व्यक्तित्व और कृतित्व नहीं हो सकती।स्वयं आगे बढ़े की कामना तो प्रत्येक व्यक्ति में होना स्वाभाविक है, लेकिन जब मन में यह संकल्प हो कि प्रत्येक जन वैचारिक तथा भौतिक उन्नति करे, तो ऐसा महान व्यक्ति ऐतिहासिक पुरुष कहलाता है। डा. अतुल कृष्ण उन्हीं व्यक्तित्वों में से एक हैं, जिन्होंने मानवता तथा राष्ट्र की सेवा को एक सार्थक दिशा प्रदान की है। साधारण से दिखने वाले असाधारण डा. अतुल कृष्ण की भाव चेतना है, जो मानवता के जीवन मूल्यों के प्रति समर्पित होने के साथ-साथ भारतीयता के गौरवशाली अतीत के प्रति आस्थावान है। इसमें संदेह नहीं है कि यदि व्यक्ति संकल्पधर्मी है तो विश्व की महानतम उपलब्धि प्राप्त कर सकता है। डा. अतुल कृष्ण ऐसे व्यक्तित्वों में से एक हैं, जिन्होंने असम्भव को सम्भव करके दिखाया है। उनकी वैचारिक तथा भौतिक उपलब्धियों को देखकर उन्हें संकल्पधर्मी कर्मयोगी कहा जा सकता है। एक ऐसा कर्मयोगी जो समाज को रचनात्मक दिशा देना चाहता है। दिशा दिग्दर्शन की। स्वयं को जानने की। खुद को परखने की और फिर राष्ट्र को पल्लवित करने की। इतिहास के पन्ने उठाकर देंखे तो युवा अतुल में एक ललक थी कि सामाजिक दुरावस्था से पीडि़त सामान्य जन की सेवा की जानी चाहिए। बचपन से ही उन्होंने इस दिशा में कार्य प्रारम्भ किया और बच्चा पार्टी के रूप में देश प्रेम के नारे लगाये। शिक्षा के साथ-साथ सामाजिक गतिविधियों में भी अतुल का खासा मन लगता था। सामाजिक गतिविधियां लगातार जारी थी और अन्य क्षेत्रों के सेवा कार्यों में बढ़-चढ़कर योगदान देने लगे थे। अतुल की राष्ट्रीय भावना से प्रेरित होकर अनेक युवा सहयोग देने लगे और सुभारती युवा उत्थान समिति सामाजिक
सांस्कृतिक एवं राष्ट्र भक्ति से प्रेरित कार्य लगातार करती रही, जिसके अन्तर्गत गाँवों में एवं आसपास गरीब परिवारों के बच्चों के लिए शैक्षणिक कैम्प विशेष रूप से लगाये जाते थे। 1971 में मेरठ मेडिकल कॉलेज में एबीबीएस में उनका दाखिला हो गया और 1980 में आपने शल्य चिकित्सा में एम. एस की डिग्री प्राप्त की। पढ़ाई के साथ सामाजिक कार्य का सिलसिला चलता रहा। इस क्रम में डॉ. अतुल ने सुभारती युवा उत्थान संस्था का गठन किया। निर्धनों तथा असहायों की सेवा करना ही ईश्वरीय उपासना के समकक्ष मान कर वे समाज सेवा से जुट गए।
मेरठ जैसा महानगर जो साम्प्रदायिक दृष्टि से अति संवेदनशील माना जाता था, वहां सम्प्रदायगत सौहार्द का वातावरण निर्मित करने का प्रयास किया। इसमें सफलता भी मिली। विभिन्न सम्प्रदायों के मध्य से एकरसता के भाव पैदा हुए, जिस महान वीर-वीरांगनाओं ने देश के लिए अपना सर्वस्व उत्सर्ग कर दिया था, उनके नाम पर सुभारती सेवा संस्था के कार्यशील केन्द्रों का नामकरण किया गया। यह भारत में एक अनुठी पहल थी। इस पहल का सुपरिणाम यह निकला कि युवा पीढ़ी की आस्था देश के महान सपूतों के प्रति गहराई से पैदा होने लगी। बाद में सुभारती युवा उत्थान संस्था की नाम बदल कर सुभारती सेवा संस्था कर दिया गया। सुभारती सेवा संस्था व सुभारती ट्रस्ट के अन्तर्गत विभिन्न गांवो में चिकित्सा केन्द्र एवं छोटे अस्पताल खोले गये साथ ही तीन प्राइमरी स्कूल, चार जूनियर हाई स्कूल एवं एक इन्टर कालेज की नींव रखी, जिनमें सम्राट चन्द्रगुप्त सुभारती जूनियर हाईस्कूल एवं इन्टर कॉलिज। विजय सिंह पथिक सुभारती प्राइमरी स्कूल एवं जूनियर हाई स्कूल। पृथ्वी सिंह सुभारती प्राइमरी स्कूल एवं जूनियर हाई स्कूल। एकलव्य सुभारती प्राइमरी एवं जूनियर हाई स्कूल। सुभारती ईश्वर चन्द्र विद्यासागर श्रमिक कल्याण केन्द्र। खुदी राम बोस सुभारती अस्पताल। कैप्टन अब्दुल हमीद सुभारती अस्पताल। सुभारती अर्बन हैल्थ केयर सैन्टर। ग्राम लोईया में 1990 में चिकित्सा केन्द्र शामिल हैं। इन स्कूलों, केन्द्रों एवं अस्पतालों में बहुत कम फीस पर चिकित्सा और शिक्षा उपलब्ध कराई जाती है। सुभारती सेवा संस्थान के अन्तर्गत संचालित ये केन्द्र उपचार के साथ-साथ बिमारियों के बचाव की जानकारियां भी उपलब्ध कराते हैं। 1988 में डॉ. अतुल ने मेरठ शहर के बीचों-बीच आधुनिक चिकित्सा से पूर्ण एक विशाल अस्पताल की नीव रखी थी और अस्तित्व में आया लोकप्रिय अस्पताल।
सन 1991 में सुभारती ने अपने संकल्पों को नवीन ऊर्जा देनें का निर्णय लिया और सुभारती केकेबी धर्मार्थ न्यास की स्थापना की गई। समय भी महान यात्रा की ओर संकेत कर रहा था और इस न्यास के माध्यम से देश में नए संकल्पों के इतिहास की रचना की जानी थी। प्रथम चरण में डॉ. अतुल कृष्ण ने दंत चिकित्सा महाविद्यालय की स्थापना की। इस संस्थान की स्थापना का ध्येय तनिक भी व्यावसासिक नही था। दंत चिकित्सा के क्षेत्र में गुणवत्तापूर्ण
शिक्षा और रोगियों को सस्ती चिकित्सा को परम उद्देश्य स्वीकारा गया। समय का प्रवाह जैस-जैसे आगे बढऩे लगा, सुभारती न्यास भी लघु से विराट होता चला गया। शनै-शनै इसके अधीन चिकित्सा विज्ञान के विभिन्न आयामों से जुड़े महाविद्यालय स्थापित होते चले गए। सन 2008 के आते-आते एक छोटा सा डॉ. अतुल कृष्ण के अथक प्रयासों और मेहनत के बल पर विशाल वट वृक्ष बन गया, जिसकी छाया में आधुनिक शिक्षा की विभिन्न विधाओं पर बने महाविद्यालय
पुष्पित तथा फलित हो रहे हैं। इसी वर्ष सुभारती महाविद्यालय समूह को विश्वविद्यालय का अनुमोदन तथा मान्यता प्राप्त हो गई और स्वामी विवेकानंद सुभारती विवि अस्तित्व में आया।
इसके बाद तो शिक्षा की परम्परागत, नीति-रीति में भी परिवर्तन सा आ गया। डा. अतुल कृष्ण के लिए शिक्षा का अर्थ केवल सूचनाएं प्राप्त करना नहीं है। उनकी दृष्टि में शिक्षा आंतरिक जगत की शुचिता और व्यवहार में मानव मूल्यों के प्रति आस्था है। यहीं कारण है कि शिक्षा के साथ संस्कारों को महत्व दिया गया। साथ ही राष्ट्र के उदात्त तथा सात्विक आदर्शों को आत्मसात करने की प्रेरणा भी दी जाने लगी। आज स्थिति यह है कि सुभारती से स्नातक या परास्नातक करने वाले छात्र-छात्राओं की पहचान किसी अन्य विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों से पृथक होती है और इसी कारण राष्ट्रीय प्रत्यायन परिषद ने 2016 में सुभारती विश्वविद्यालय को ‘ए’ ग्रेड प्रदान कर सम्मानित किया। यह कुछ और नहीं बल्कि डॉ. अतुल कृष्ण के विजन और मिशन की प्रमाणिकता का उदाहरण था।
सुभारती की स्थापना के साथ भारत में ऐसा प्रथम बार हुआ होगा कि प्रति माह किसी न किसी महापुरुष के कृतित्व तथा व्यक्तित्व से अवगत कराने के लिए किसी दिवस का आयोजन किया जाता हो और वो भी एक शिक्षण संस्थान में। यह परिकल्पना डा. अतुल कृष्ण की है, जिन्होंने महापुरूषो, स्वतंत्रता सेनानियों, समाज सुधारको, विचारकों, इतिहास पुरुषों-व्यक्तित्वों को सुभारती में पढ़ने या कार्य करने वाले हर व्यक्ति के की स्मृति में जीवित रखा है और विश्वविद्यालय की परिसीमाओं से बाहर ले जाने का कार्य किया है।
यह सही है कि स्वातंत्रोत्तर भारत में इतिहास के साथ अनेक खिलवाड़ किए गए। डा. अतुल कृष्ण ने उन विकारों तथा मिलावट को दूर करने का प्रयास किया है। भारत में पहली बार सुभारती विश्वविद्यालय में 21 अक्टुबर को अखंड भारत का स्वतंत्रता दिवस आयोजित करने की परम्परा आरम्भ की, इस दिन नेताजी ने आजाद भारत की सरकार का गठन किया था। इस विचार को राष्ट्रीय स्तर पर सहमति मिल रही है। पिछले साल देश की सरकार और उसके नुमाइंदो को भी लाल किले पर जाकर इस दिन को याद कर ध्वज फेहराना पड़ा। डा. अतुल कृष्ण जातिविहीन समाज की परिकल्पना करते हैं। वैसे अनेक लोग जातिविहीन समाज की बात करते हैं लेकिन व्यावहारिक प्रयास उनके द्वारा ही किए गए। सहभोज करना तो सामान्य बात है, पर वंचित समाज के घर का भोजन खाने के लिए सर्व समाज को एकत्र करना, स्वयं में अद्वितीय पहल है। डॉ. अतुल वंचित समाज में आत्मगौरव पैदा करने का प्रयास कर रहें हैं। इससे समाज के विभिन्न वर्गों को साथ लाने में काफी सफलता भी मिली है।
अपने जीवन में उद्देश्यों की पूर्ती में निरन्तर लगे रहने के बावजूद डॉ. अतुल साहित्यिक गुणों के भी धनी हैं। एक सफल सर्जन, समाज सेवक और शिक्षाविद् होने के साथ-साथ डॉ. अतुल एक साहित्यकार भी है। आपने अपनी कलम से कई सजग साहित्य एवं सामाजिक विसंगतियों पर पुस्तकों की रचना की है। जिनमें पलायन, उन्नति के पथ पर, नवरात्री व्रत प्रायण और आधारशीला मुख्य है। जमाने के लिए जीने वाले डॉ अतुल कृष्ण का काफिला कारवां बना और अब कारवां आन्दोलन का रूप ले चुका है। वो आन्दोलन जिसका मकसद हर चेहरे पर मुस्कान देखना, जाति विहिन समाज का निर्माण करना, सेवा, संस्कार और शिक्षा प्रचार प्रसार और एक ऐसे देश की परिकल्पना को मूर्त रूप प्रदान करना जिसमें हर इसांन, धर्म को रहने की आजादी हो और सबके लिए हो एक ही कानून। इन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए वर्तमान में ‘‘उन्मुक्त भारत संस्था‘‘ के माध्यम से जन जागरण चेतना अभियान, राष्ट्रीयता, भाईचारे और आपसी सौहार्द को बढ़ावा देने अथवा अन्तरजातीय विवाह कराने के उद्देश्य को पूर्ण करने के लिए इस संस्था का गठन किया गया है, जिसका नाम है उन्मुक्त भारत । इस संस्था के उद्देश्यों को जन-जन तक पहुंचाना इसलिए भी आवश्यक है ताकि लोगों में समरसता का भाव उत्पन्न किया जा सके।
डा. अतुल कृष्ण मानते है कि हिंसा, असमानता, कुंठा और संघर्ष की विभीषिका से मानवता को सुरक्षित रखने के लिए तथागत के आदर्शों को अपनाना होगा। वे स्वामी विवेकानंद की भांति देश में सांस्कृतिक क्रांति के पक्षधर हैँ। उनका मानना है कि वर्तमान दुखों तथा वेदनाओं का निदान भारत के प्राचीन अध्यात्म में है। भगवान बुद्घ का पंचशील का सिद्धान्त प्रत्येक भारतीय ही नहीं, सम्पूर्ण मानव जाति को स्वीकार करना चाहिए। अतः इन विचारों पर चलते हुए डा. अतुल कृष्ण ने भारतीय इतिहास की धारा को मोडऩे का कार्य किया है। सुभारती दिवस, 21 अक्टूबर को स्वतंत्रता दिवस तथा बौद्ध-दर्शन का प्रचार-प्रचार उनको एक नई पहचान प्रदान कर रहा है।
-डा. नीरज कर्ण सिंह (लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं मीडिया विशेषज्ञ हैं)