
राधाकांत पाण्डेय। यह किताब स्वयं की पहचान बनाने के लिए एक संघर्षशील कलाकार के मन की अकुलाहट और उसके द्वारा परिस्थितियों से संघर्ष की कहानी है। अगर सच कहूँ तो एक कलाकार होने के नाते मन की छटपटाहट और अपने लक्ष्य को पाने का जुनून पूरी कहानी के दौरान मन को उत्सुकता के साथ पढ़ने को विवश करता रहा।
यह कहानी एक सम्पन्न मध्यम परिवार के इकलौते चिराग समीर की है, जिसके पिता पुलिस विभाग के वरिष्ठ अधिकारी हैं, समीर बचपन से मायानगरी, सिनेमा और कला का दीवाना है। समीर युवावस्था में ही कलाकार बनने के लिए माँ-बाप के लाड़-प्यार और तमाम ऐशो-आराम त्यागकर अपनी महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए घर छोड़कर भाग जाता है और घर छोड़ने कि प्रक्रिया बहुत ही असमान्य रहती है , वह एक ऐसा कदम उठा लेता है कि जिसके बारे में एक सामान्य इन्सान सोच भी नही सकता। कहानी का प्रारंभ यहीं से होता है, लेकिन घर छोड़ने के बाद उसके जीवन के सारे पासे उलटे पड़ने लगते हैं और जिस भविष्य की योजना बनाकर वह घर छोड़ता है वैसा कुछ भी नही होता , और इस मायानगरी मुंबई में जीवन व्यतीत करना दूभर लगने लगता है जैसे तैसे करके वह गुज़ारा कर पा रहा है , लेकिन समय बीतने के साथ परिस्थतियाँ कुछ अनुकूल होती हैं और “भगवान के घर देर है अंधेर नही” इस कहावत को चरितार्थ होते हुए कहानी में देखा जाता है। समीर के सपने तो पूरे हो जाते हैं लेकिन फिर से किस्मत ऐसा पलटा खाती है कि सब कुछ मिलने के बाद ज़िंदगी ही नही रहती। इसलिए अगर इस कहानी को एक पंक्ति में मै कहूँ तो यही कहूँगा कि “इंसान के सपने तो मुकम्मल हो जाते हैं ज़िंदगी मुकम्मल हो ये ज़रूरी नही।” कहानी का समापन सुखद नहीं होना पाठकों को थोड़ा निराश जरूर करता है।
लेखक परिचय
7 साल पहले कला के क्षेत्र में आने के लिए रंगमच से एक नए सफर की शुरुआत की थी | और इंजीनियरिंग की पढ़ाई से समय बचाकर नाटकों अभिनय करने लगा , फिर कुछ दिन बाद हिंदी पढने का शौक चढ़ा तो दोस्तों से उधार मांगकर या फिर कॉलेज लाइब्रेरी में रखी हुई हिंदी किताबें पढने लागा , फिर वहीं से पढ़ते-पढ़ाते कुछ लिखने का शौक हुआ तो लगभग एक साल में “कलाकार” की कहानी लिखी कुछ कुछ कवितायें प्रकाशित हुईं तो कविसम्मेलनों में भी जाने लगा | आजकल फिल्म मेकिंग में भी हाँथ आज़मा रहा हूँ पुराने इलाहाबाद और नए प्रयागराज पर एक documentry बना चूका हूँ जिसे लोगों ने खूब सराहा है और आजकल शिक्षा जैसे सामाजिक मुद्दे को लेकर एक शार्ट फिल्म बनाने की प्रक्रिया में हूँ |
वैसे तो हर एक वर्ग के लिए यह कहानी है लेकिन उन युवाओं को ज़रूर पढ़ना चाहिए जो अपने जीवन में बहुत कुछ करना चाहते हैं लेकिन कुछ कारणों की वजह से वे उस ओर कदम नही बढ़ा सके और एक सीख यह भी है हमारे लिए अपने सपने अधिक महत्वपूर्ण हैं या घर-बार।
कहानी में खासा नयापन और रोमांच है , इस पूरी कहानी में लेखक द्वारा सस्पेंस बरकरार रख पाना लेखक के कुशल लेखन और भविष्य की संभावनाओं को दर्शाता है, बहरहाल लेखक की यह पहली पुस्तक है लेकिन पूरी कहानी के दौरान लेखन की कसावट पाठक को बाँधे रखती है।कुल मिलाकर अगर आप नई कहानियों के शौकीन हैं तो मेरे दृष्टिकोण से यह पुस्तक आपको निराश नहीं करेगी।उपन्यास के रचनाकार प्रमोद कमल को उनकी पहली पुस्तक हेतु बधाई और अशेष शुभकामनाएँ।
पुस्तक का नाम-कलाकार
प्रकाशक –दख़ल प्रकाशन
ISBN NO.- 9384159360
पुस्तक का मूल्य-99.00
लेख़क : प्रमोद कमल
रेटिंग- **